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मनराम
३४१ ब्रह्मऋषि को सूरिमंत्र देकर उनका नाम विनयदेव रखा । स्वयं अनशनपूर्वक स्वर्गवासी हो गये। ब्रह्मऋषि ने अहमदाबाद में क्षमासागर सूरि के सहयोग से नवीनगच्छ का स्थापनोत्सव कराया । सं० ११६४६ में विनयदेव के शिष्य विनयकीति बुरहानपुर में चौमासा रहे,
वहीं मनजी ऋषि ने चार प्रकाशों में यह रास लिखा। रास में बड़े (सुन्दर स्थल यत्रतत्र मिलते हैं जैसे रानी की शोभा का वर्णन
दाडिम कली जिम दन्त अधर प्रवाल सोहंत । जीभडी अमिय भंडार, बोल बोलइ सार । हंस गति चालंति सदा वयण हसंति,
वरसंति वाणी अमीय सरषी।' इत्यादि इसके प्रथम प्रकाश में ७७, द्वितीय में १२१, तृतीय में १६५ और चतुर्थ में २४३ छंद हैं। यह रास न केवल कलेवर में बड़ा है अपित यह काव्यत्व एवं ऐतिहासिक सूचनाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। __मनराम -आप महाकवि बनारसीदास के समकालीन थे। इन्होंने अपनी रचना 'मनराम विलास' में बनारसीदास का सादर स्मरण किया है। इनकी रचना भी उन्हीं की तरह आध्यात्मिक रस से
ओतप्रोत है। इन्होंने खड़ी बोली का प्रयोग किया है। हो सकता है कि ये मेरठ के आसपास के रहने वाले हो। डा० कस्तूर चन्द कासलीवाल ने इन्हें संस्कृत का विद्वान् बताया है। इनकी रचना 'मनराम विलास' सुभाषितों का संग्रह है। इसे किसी बिहारीदास ने संकलित-संपादित किया है, यथा
मेरे चित्त में अपनी, गुनमनराम प्रकाश,
सोधि वीनये एकठे किए बिहारीदास । २ इसमें दोहा, सवैया और कवित्त आदि छंदों का प्रयोग किया गया है। प्रारम्भ में पंचपरमेष्ठि की भक्तिपूर्ण प्रार्थना देखियेकरमादिक अरिन को हरै अरहंतनाम,
सिद्ध करै काज सब सिद्ध को भजन है। उत्तम सुगुन-गुन आचरत्व जाकी संग,
आचारज भगति बस जाकै मन है।। १. ऐतिहासिक रास संग्रह भाग ३ २. डा०प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन भक्ति काव्य पृ० १९३-१९७
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