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________________ ३४० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सकल सिद्धि आनन्दकर जिनशासन शृंगार, चउद पूरब नो सार अ जगि जपउ मंत्र नबकार । भाषा शैली के नमूने के रूप में अन्त की कुछ पंक्तियाँ भी प्रस्तुत हैं पूज्य चउमास तिहां रह्या अ लोक करे धरमध्यान । श्री विनयदेव पट्टधरु अ, श्री विनयकीरतिराय सुधरमगच्छ आज दीपतो ओ आदरयो मनभाय ॥ नया बुरहाणपुर जाणीइ, अ देशविदेश विख्यात; संवतसोलछइतालइ अ सुणयो भवियणबात ।' मणजीऋषि आनंद सूं ओ चोथ्यो रच्यउ प्रकाश; अह रास जगि [ नांदओ ओ, जां लगि मेरुथिर वास । ऐतिहासिक रास संग्रह में दिये गये विनयदेवसूरिरास के मूलपाठ से निम्नांकित सूचनायें प्राप्त होती हैं- पार्श्वचन्द्र गच्छ के संस्थापक पार्श्वचन्द्र के शिष्य और सुधर्म गच्छ के स्थापक विजयदेव सूरि और विनयदेव सूरि अथवा ब्रह्मऋषि के चरित्र को लक्ष्य करके सं० १६१६ में उनके शिष्य मनजी ऋषि अथवा माणेकचन्द्र ने बुरहानपुर में यह रास लिखा । इसमें ३७वीं कड़ी तक मंगलाचरण, तत्पश्चात् रास का उद्देश्य बताया गया है । जंबूद्वीपान्तर्गत मालवा और उनके निवास स्थान आजणोठ का वर्णन किया गया है । उस समय वहाँ सोलंकी राजा पद्मराय का राज्य था । उनकी पच्चीस रानियों में सीतादे पट्टमहिषी थी । उनके धनराज नामक पुत्र था । सं० १५६८ में दूसरा पुत्र ब्रह्मकुंवर हुआ । माँ-बाप ८ वर्ष की अवस्था में बच्चों को छोड़कर स्वर्गवासी हो गये । उनके काका दोनों बच्चों को लेकर संघ के साथ गिरिनार गये । वहाँ रंगमंडण ऋषि के उपदेश से बालक ब्रह्मकुंवर को वैराग्य हुआ । काका गुणसिंह वापस लौट गये और बच्चों ने दीक्षा ली और पार्श्व चंद्र से शास्त्राभ्यास किया । दक्षिण को विहार किया । गुजरात से लौटते समय रास्ते में विजयनगर के राजा रामराय के दरबार में दिगम्बरों को बाद में पराजित किया। वहीं धनराज को आचार्य पद्वी देकर नाम विजयदेवसूरि रखा गया । ब्रह्मऋषि ने जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका लिखी। जब बिहार करते दोनों खंभात पहुँचे तो विजयदेव रोगग्रस्त हो गये और वहीं उन्होंने १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २८७ (प्रथम संस्करण ) भाग २ पृ० २३८ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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