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________________ मनजी ऋषि इसके बाद चंपकसेन कौन था, कहां का राजा था ? इत्यादि वृत्तान्त वर्णित है। यह ३८० कड़ी की रचना है । सम्पूर्ण रास में वस्तु, चौपाई और दोहा तीन छन्द ही प्रयुक्त हुए हैं। इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है-- शान्ति जिणेसर मनधरी, निमनाथ बहुभत्ति जुत्तिय, जीरावलि जगदीपतउ, पास देव मनिसिधि ध्याइय ।' महावीर चुवीसमउ प्रणमी पांचइ देव, पंचे परमिठ भाविसु अनुदिन सेव । मधुसूदन व्यास--'विक्रमचरित्र' इनकी लोकप्रिय रचना है। ये भी जैनेतर कवि थे इसलिए इनके सम्बन्ध में विशेष विदरण नहीं मिल सका है। रचना का आदि देखिये-- प्रथम सारद प्रणमु वाधवाणि वरदाय, उजेणी तो राजीयो, त्रविशविक्रमराय । माय सुतात गुरुवइ नमुं सुरतेत्रीसे कोडि, विक्रमचरित्र वीवाह कहुँ रुषे कोय काढ़िखोडि विक्रमादेव जिहां वसइ, उजैणी अहिठाण, व्यास भणइ रचनावली सरसी आखिर आणि । मधुसूदन ने अपना नाम मदनसूदन लिखा है, यथा-- देषइ नाक जिसो तिलफल, ऊपरि मोती को नहि मूल, देवइ भमर भमइ रणझणइ, कवि मदनसुदन इणि परि भणइ ।' कवि ने रचनाकाल और अन्य विवरण नहीं दिया है। इसकी प्रति हरजी ऋषि द्वारा लिखित प्राप्त है । मनजी ऋषि-पार्श्वगच्छीय विनयदेव> विनयकीर्ति के शिष्य थे। आपने अपने गुरु की वंदना में सं० १६४६ पौष शुदी ७ भृगुवार को बुरहानपुर में 'विनयदेवसूरि रास' लिखा। यह रास 'ऐतिहासिक रास संग्रह भाग ३' में प्रकाशित है। विनयदेव पावचन्द्र के शिष्य थे। उन्होंने सुधर्मगच्छ चलाया था। इस रास की प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं१. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५०३, भाग ३, पृ० ६५५ (प्रथम संस्करण) भाग २ पृ० २५-२६ (द्वि० सं०) २. वही, भाग ३ खंड २ पृ० २१५७ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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