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________________ ३३८ कवि ने रचनाकाल इन पंक्तियों में बताया है- मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तासु सीस भाविइ करी, रचियो रास सुविचार, संवत सोल पंचोत्तरइ, पोष मास उदार । यहाँ पचोत्तर का अर्थ ७५ लिया है जबकि मतिसार की रचना कर्परमंजरी रास में आये पचोत्तर का अर्थ पाँच लिया गया था । यह संदेहास्पद है । इसका आरम्भ देखिये - अरिहंतादिक पंचमेपरमेष्ठी प्रधान, नमुं निरंजन चित्तस्युं मांगु अविचल मान । कास्मीर निवासिनी सरसति समरु माय, तास चरण भावइ नमी करूं कवित्त उच्छाहि । गुरु परंपरा के अन्तर्गत उदयरत्न और सौभाग्यसुन्दर का उल्लेख किया है और अपने को सौभाग्यसुंदर के शिष्य गुणमेरु का शिष्य कहा है। मतिसागर II -- आपकी गुरुपरंपरा का पता नहीं चल पाया, अतः यह भी निश्चित नहीं है कि गुणमेरु शिष्य मतिसागर और ये एक ही व्यक्ति हैं या दो मिन्न व्यक्ति हैं । श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५०३; भाग ३ पृ० ६५५ पर इनकी रचना 'चंपकसेन रास' का कर्ता मतिसार को बताया था। यह मतिसार के विवरण के साथ कहा जा चुका है किन्तु रचना में कर्त्ता का नाम मतिसागर स्पष्ट रूप से आया है अतः मतिसार इसके कर्त्ता नहीं हैं । सन्दर्भित पंक्तियाँ देखिये -- संवत सोल पचोत्तरइ (१६०५) रचीउ श्रावण मासि, श्री शांतिनाथ सुपसायलउ रचिउ हर्ष उल्हासि । अह जि रास जे नर भणइ श्रवण सुणइ बहु बुद्धि, कवि मतिसागर इम भणइ घरि घरि मंगल ऋद्धि | इस कृति का संदेश तप, व्रत, संयम द्वारा निर्वाण की प्राप्ति है | चंपकसेन की कथा दृष्टान्त रूप में दी गई है -- यथा तप व्रत संजम सूधइ रहइ, अमर रिधि ते निश्चय लहइ, शिवसुख पांभीजइ सही जेणि, जिम पामिउ राय चंपकसेन । १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४९१-६७ ( प्रबम संस्करण, २ . वही भाग २ पृ० २५-२६ ( द्वितीय संस्करण) " For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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