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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आसापूरणा पास प्रभु पुहवि प्रसिद्ध उजासु, सुजस सुरासुरवर मिली, गावइ धरिय उलास, धरममरम अति दोहिलउ कहतां विणु गुरुवाणि, भविष्यत पुण्यइ उदयवसिं, लहिय ते गुणखाणि । बन रन शत्रु जलन जालइ धरम हवइ रखपाल, इह उपनय वर विबुधवर अघटकुमार संभाल । कवि कहता है कि अघटकुमार ने जैसे उद्यमपूर्वक धर्माचरण करके निर्वाण प्राप्त किया, उसी प्रकार संसारी जीवों का भी कर्तव्य है । अन्त में कवि लिखता है—
जाणी उद्यम धरमइ धरउ जिम सुखसंपद लीलावरउ,
रचनाकाल -- अंबुधि मुनिरस ससिधर वरसइ,
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यह रचना जहाँगीर के शासनकाल और जिनसिंहसूरि के सूरिकाल में रची गई थी । यथा
अ संबंध भण्यउ मन हरसइ ।
युगप्रधान भी जिनसिंह सूरि, राजइ राजइ जे गुणभूमि, जिहाँ जहाँगीर साहि सवरोज, नय महि प्रजापालइजिम भोज । आगे गुरुपरंपरा दी गई है ।
धर्मबुद्धि मंत्रीश्वर चौपाई (सं० १६९७ राजनगर ) आदि-- आणि आनंद अंगमइ, पणमी पास जिणंद, फलदाई फलवाधपुरइ कलियुगिसुरतश्कंद ।' रचनाकाल -- संवतमुनिनिधि रस शशि वरसइ, अ सम्बन्ध रच्यो मन हरसइ । राजनगर संपद भरि सरसइ,
जासु शोभागु फुण पुरफरसइ ।
आपने एक खंडन मंडन युक्त साम्प्रदायिक रचना भी की है जिसका नाम है -- लु पक मतोत्थापक गीत ( गा० ६१ ) उसकी अन्तिम पंक्तियाँ देखिये --
अहे भाव आगमि भण्यउ श्री गुण विनय पसाइ, मत कीरत वाचक मणइ, निजमन केरइ भाइ ।
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ५७७ और भाग ३ पृ०
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पृ० १८५ (द्वितीय संस्करण ) तथा भाग १ १०६८ (प्रथम संस्करण )
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