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________________ मतिकीति इम श्री भुवनकीरति कहि भाव धरीघणौ रे गिरुआनो जसवासः अधिको ओछो इहां किण जेह कह्यो रे हुबइ रे मिच्छादुकड़ तास । शील एवं सम्यक्त्व का माहात्म्य इस कथा द्वारा कवि ने स्पष्ट किया है । अन्त में कवि ने लिखा है--- सील प्रभावइ समकित गुणनइ धारविइ रे, __दिनप्रति कोटि कल्याण । तिणि अ भणता गुणता सुणता चउपइरे, जीविन जनम प्रमाण । इन पाँच प्रमुख रचनाओं के अलावा आपने कई धवल, स्तवन आदि छोटी रचनायें भी की हैं। पावलघुस्तवन की कुछ पंक्तियाँ इनके प्रतिनिधि रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह ९ कड़ी की लघु कृति है। इसका आदि इस प्रकार है-- तु ग्यानी तुझ जे कहुँ जी तेहन तिल पोसाय, पिण ससनेहा माणसां जी विगर कह्या न रहाय । अन्त-- सांनिधि करिजाइ अवसरइ जीइतरइ कोटि कल्याण, मन बीसरो मन थकी जी, भुवनकीरति कुलभांण ।' नवीन संस्करण (जैन गुर्जर कविओ) के संपादक भी जयंत कोठारी को निश्चित विश्वास नहीं है कि यह रचना उन्हीं भुवनकीर्ति की है। लेकिन जब तक श्री देसाई की स्थापना के विरुद्ध कुछ निश्चित प्रमाण नहीं मिलता तब तक उसे अमान्य करने का मूझे औचित्य नहीं दीखता, अतः इसे मैं इन्हीं भुवनकीति की रचना मानता हूँ। मतिकीर्ति--आप खरतरगच्छीय क्षेमशाखा के प्रमोदमाणिक्य > जयसोम > उपाध्याय गुणविनय के शिष्य थे। अपने चित्तललितांगरास, अघटकुमारचौपइ सं० १६७४ आगरा और धर्मबुद्धिरास सं० १६९७ नामक काव्य रचनायें की हैं। गद्य में 'प्रश्नोत्तर' नामक रचना भी उपलब्ध है। अच्छयकुमार चौपइ (२७२ कड़ी सं० १६७४ आगरा) के आदि की पंक्तियाँ देखिये-- १. जैन गुर्जर कविओ, भाग ३ पृ० ३७८ २. श्री अगर चन्द नाहटा-परम्परा पृ० ७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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