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________________ भुवनकीर्ति गणि ३३१ में शत्रुजयस्तवन बालावबोध सं० १६९२ उल्लेखनीय है।' आपकी कुछ रचनाओं के विषय, भाषा शैली तथा काव्यत्व के नमूने के रूप में कुछ. उद्धरण प्ररतुत किये जा रहे हैं। अघटित राजर्षि चौपइ (१६६७ कार्तिक, शुदी ५ गुरु, लवेरा), का रचनाकाल कवि ने इस पंक्तियों में बताया है। सोल सइ सतसठुइ संवते काती सुदि वर मासि, पंचमि गुरुवारे सिद्धि जोग जी, संति पसाय उलासि । इसके पश्चात् उपरोक्त गुरुपरंपरा दी गई है। अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं इणिपरि जीवदया जे पालिस्ये, लहिस्ये ते भवपार, भणे गुणे जे सुणिसी प्रतिदिन, ता घरिमंगलच्यार ।' भरत बाहुबलि चरिय-(६ खंड ८३ ढाल, सं० १६७१ श्रावण शुक्ल ५, गुरु, जैसलमेर) आदि - श्री आदीसर सामिनइ करि प्रणाम मनसुद्धि, वीनति अती वीनवु आपउ निरमल बुद्धि । भरत बाहुबलि तणउ, चरित्त कहु चितलाइ, जनम करुं सफलउ जगइ, पातक जेम पुलाइ । वीरा रस इहा अधिक छइ, चरित्र शास्त्र संभावि, ठामि-ठामि रस ओर पिण सुणिज्योभवियणभावि ।१४। अर्थात् इस रचना में प्रधान रस वीर है, बीच-बीच में अन्य रसों का भी समावेश किया गया है। रचनाकालसंवत सोल रसा ऋषि मासइ श्रावणइ रे, सुदि पंचमि गुरुवार रे, सिद्धियोग घ्रम भावनइ रे। गुरु परंपरा के अन्तर्गत खरतरगच्छ के यशस्वी आचार्य जिनचंदसूरि से लेकर जिनसिंह के पश्चात् क्षेम शाखा का विवरण दिया गया है। जिसमें जससुन्दर, पद्मनिधान, हेमसोम और ज्ञाननंदि का स्मरण किया गया है । यथा १. श्री अगर चन्द नाहटा पृ० ८४ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १२५ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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