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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसके अन्त में रचना सम्बन्धी विवरण इस प्रकार बताया गया हैचौरासी लोख जीवा जोनियां फिरिया वार अनन्त,
मुनि भीम भणे अरिहंत जपो, जिम पामो भवअन्त । संवत सोल नवाणुये, बीजा जे बुधवार,
आसो मासे गाइयो, छीकारी नगरी मझारि । यह छीकारी में लिखी गई यानि इसका रचना स्थान भी भिन्न है । भीमभावसार की सभी रचनायें बडोदरा में लिखी गई थीं। इस कृति का आदि-- वैकुण्ठ पथ बीहामणो, दोहिलो छे घाट, आपणनो तिहा कोई नहीं जे देखाउ बाट,
मार्ग वहे रे उतावलो। अन्त-भीम भणे सहु सांभलो, नवि कीजे पाप, ऊँछो आधिको जे मे कहयो ते तमे करजो माफ
मार्ग वहे रे उतावलो।' उपरोक्त तथ्यों के आधार पर भीम मुनि को भीमभावसार से भिन्न कवि स्वीकार किया गया है।
भुवनकोति गणि-आप खरतरगच्छीय क्षेमशाखा स्थापक क्षेमकीर्ति संतानीय शिवसुन्दर पाठक>पद्मनिधान>हेमसोम>ज्ञाननंदि के शिष्य थे। इनकी रचनायें सं० १६६७ से सं० १७०६ तक की प्राप्त हुई हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि ये मुख्यतः १७वीं शताब्दी के कवि थे। १६वीं शती में एक दिगम्बर भट्टारक भुवनकीर्ति हो गये हैं जो सकलकीर्ति के शिष्य थे, दूसरे भुवनकीति कोरंटगच्छीय कक्कसूरि के शिष्य थे। इन दोनों का परिचय १६वीं शताब्दी के अन्तर्गत यथास्थान दिया जा चुका है। ये उन दोनों से भिन्न कवि हैं। इनकी 'अघटितराजर्षिचौपइ' सं० १६६७ लवेरा, 'भरतबाहुबलि चौपइ' सं० १६७५ जैसलमेर, जम्बूस्वामी चौपइ' सं० १६९१ खंभात, 'गजसुकुमाल चौपई' सं० १७०३ खंभात, 'अन्जनासुन्दरीरास' सं० १७०६ उदयपुर, पार्श्वधवल सं० १६९२ आदि कई बड़ी रचनायें प्राप्त हैं। आप सुकवि के साथ ही एक अच्छे गद्यकार भी थे। आपकी गद्यरचनाओं १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५९८-५९९ (प्रथम संस्करण) और भाग
३ पृ० ३४०-४१ (द्वितीय संस्करण)
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