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भीममुनि
.३२९ मातसरसति मातसरसति तणइ सुपसाय । राजश्रेणिक तेह तणउ प्रबंध रास रसाल कीधउ; गुणी गुरुश्रीवरसिंघ रिषितणइप्रसादिसउअर्थ सीधउ ।
तीसरे खंड की रचना सं० १६३६ आसो वदि ७ रविवार को पूर्ण हुई, यथा
संवत सोल छत्रीसइ वरसइ आसो वदि रविसप्तमी,
श्रेणिकरास खण्ड त्रीजउ कीधउ, श्रुत देव्यानि परणमी। इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है :स्वामी ओ सरब सिद्ध नमूकर जोडि ,
गोयम आदि साध सहू नमू ।' __ आपकी दूसरी प्राप्त रचना 'नागल कुमार नागदत्त रास' है । यह २०१ कड़ी की कृति है।
इसकी रचना सं० १६३२ आसो शुदी ५ भृगुवार को बडोदरा में हुई । आदिप्रथम अ गौतम स्वामीनु नाम अ
सीझइ सहुकाम प्रणाम करूं से। सक्ति से सारदा लागु हुं पाय रे,
___मया करउ माइ पदवंध करूं । रचनाकाल-बटपद्र संवत सोलवत्रीसि, आसो सुदि भगू पंचमी,
भीम भणइ मि रचीउ रंगि श्रीगुरुनिचरणे नमी। भीम मुनि -श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ भाग ३ के पृष्ठ ७०५ पर भीम भावसार और भीम को अलग-अलग बताया है किन्तु अन्त में दोनों को एक ही माना है, अतः भीम के नाम से प्राप्त श्रेणिक रास के द्वितीय और तृतीय खंड को भीमभावसार की ही रचना स्वीकार कर लिया है। लेकिन भीम मुनि कोई अन्य व्यक्ति प्रतीत होते हैं। इसकी रचना 'बैकुण्ठ पंथ' सं० १६९९ की है। भीमभावसार से इनके बीच समय के लम्बे अन्तराल के कारण ये अलग व्यक्ति लगते हैं। यह रचना जैनप्रकाश पृ० ४०३ से ४०८ पर प्रकाशित है । १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १२० (द्वितीय संस्करण) २. वही, पृ० १२३
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