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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रथम खण्ड में २७८ गाथा और ११ ढाल हैं। द्वितीय खंड में ११ डाल और २५७ गाथायें तथा तृतीय खंड में १९४ गाथायें हैं । तृतीय खंड की नवीं ढाल में रचनाकाल इस प्रकार लिखा गया है
संवत सोलसिं त्रासीइ मास जेठ मनिरंगिरे लाल,
बीजे खंड मनोहरु नवमी ढाल रसाल रे लाल।' कवि ने श्लोक संख्या ११०५ बताई है।
भावहर्ष-खरतरगच्छ की भावहर्षी शाखा के आप प्रवर्तक आचार्य थे। यह घटना सं० १६२१ की है। इसकी गद्दी बालोतरा में है। आपने १६३ गाथा की एक सुन्दर रचना 'साधुवंदना' नाम से रची है जो सं० १६२२ में जोधपुर में रची गई। इसके अतिरिक्त आपने करीब २० सरस गीत और भाव प्रवण स्तवनादि लिखे हैं । इनकी रचनाओं का उद्धरण नहीं उपलब्ध हो सका।
भीमभावसार-आप लोकागच्छ के वरसिंह के शिष्य थे। आपने 'श्रेणिकरास' तीन खण्डों में (सं० १६२१ भाद्र शुक्ल पक्ष में बड़ोदरा (वटपद्र) में लिखा है। इसके प्रथम खण्ड का आदि इस प्रकार है
गोतिमनइ सिर नाभीय, मनवांछित फल पामीय । स्वामीय सेवक नी दया करो । सारदानइ चरणे लागु, शुद्धि बुद्धि माता हुं मांगु,
द्यो मुझनइ वाणी अनोपम रुअडी ओ। अंत-वटपद्र नयर संवत सोल अकवीसइ, भाद्रपद सुदि शुभवारे ।' ___ इसका द्वितीय खंड एक दशक बाद लिखा गया। यह ४१६ कड़ी का है। बडोदरा में ही यह भी लिखा गया जैसा कि इसकी अंतिम पंक्तियों से प्रकट होता हैवटपद्र नयरि संवत सोलवभीसइ भाद्रपदवदि बीजइ सुकतइ ।
इसमें गुरुपरम्परा कुंवरपाल से पाल्हा और वरसिंह तक बताई गई है। इसका आदि देखिये - १. जैन गुर्जर कविप्रो भाग ३ पृ० ९९६-९९८ (प्रथम संस्करण) और भाग
३ पृ० २५३-२५५ (द्वितीय संस्करण) २. श्री अगर चन्द नाहटा-परम्परा पृ० ८८ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २२६-२२७ और भाग ३ पृ० ७०५-७०८
(प्रथम संस्करण)
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