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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुरुपरंपरा-श्री तपागच्छ सोहाकरो, श्री हीरविजयो गुरु जुगप्रधानो। देसना जस सुणी साहि अकब्बर गुणी, धमकामइं थयो सावधानो। इसके बाद विजयानंद, विमलहर्ष और मुनिविमल तक का स्मरण किया गया है। यह रचना 'प्रकरणादि विचार गभित स्तवन संग्रह' में जैनधर्म प्रसारक सभा द्वारा प्रकाशित है। श्रावकविधिरास अथवा शुकराजरास १००१ कड़ी की विस्तृत रचना है । यह सं० १७३५ में लिखी गई; कवि लिखता है भूतभवन रयणायर धरणी (१७३५) अ संवत सूधो जाणो। दिन दिवालइ रासनी रचना, सिद्धि चढ़े हरखाणो ।' यह रचना १८वीं शताब्दी की है, अतः अधिक विवरण नहीं दिया जा रहा है । भावविजय १७वीं और १८वीं शताब्दी के कवि थे। २४ जिनगीत एक चौबीसी है। यह '११५१ स्तवनमंजूषा' और 'चौबीसी तथा बीसी संग्रह' में प्रकाशित है । इसका आदि-- श्री विमलाचल मंडणउ रे, श्री आदीसर जगदीश रे । भगतवछल प्रभु माहरउ रे, तेहं ध्यान धरत जगदीश रे। आदीश्वरस्तवन के बाद १२वीं कड़ी में धर्मनाथ का स्तवन इस प्रकार है इम दिसि कुमरी रे सूतिकरम करे, जेहनां धरीअ आंण हो जी। भावविजय मुनि हरष धरइ धणउ, नामि ते धरम जिण हो जी। शांतिजिनस्तवन का कलश देखिये-- इम शांतिपालक शांतिसुहकर, शुण्यो शांति जिणेसरो। श्री कहेलवाडा नयर मंडण, कर्मपंक दिवाकरो ॥ जगजंतुनायक मुगतिदायक, कामसायक संकरो। उवझाय श्री मुनि विमल सेवक, भाव सुख संतति करो ॥२ शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन का कलश भी उदाहरणार्थ प्रस्तुत है इति दुक्खवारक सुक्खकारक श्री शंखेसर जिनवरू । मई थुण्यो भगति आप सगति भवियवंछिय सुरतरु ।। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३२३-३२४ (द्वितीय संस्करण) २. वही, पृ० ३२५-३२६ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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