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भावविजय
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_श्री मो० द० देसाई ने पहले रचनाकाल सं० १६३२ कहा था, बाद में सं० १६६० निश्चित किया है। जो हो, रचना १७वीं शताब्दी की है । इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
विमल वाणि वाणि दीओ, कविजन पूरो आस, हंसवाहनी गजगमिनी, देयो बुद्धि प्रकाश ।
शासन देवता देव सवि प्रणमी तेहना पाय, रास रच्यु रलीयामणो कनकसेठि गृहीराय । एकमनाने सांभले भणे गणे सविसेस,
अविचल लीला सो लहे, विलसे भोग विसेस ।' भावविजय -तपागच्छीय उपाध्याय विमलहर्ष के शिष्य मुनिविमल आपके गुरु थे। आपने सं० १६९६ चैत्र कृष्ण १०, रविवार को खंभात में ध्यानस्वरूप (निरूपण) चौपाई की रचना की। इसके अतिरिक्त आपकी अधिकतर रचनायें 'स्तवन' रूप में ही प्राप्त हैं जैसे शांतिजिनस्तवन, शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, अंतरीक्ष पार्श्वनाथ छंद और २४ जिनगीत आदि । इसके अलावा 'स्तवनावली' नामक स्तवनों का एक संकलन भी प्राप्त है जिसमें अरनाथ स्तव, मल्लिनाथ स्तव, सुव्रतस्तव, नेमिनाथस्तव आदि स्तवन संग्रहीत हैं। आपकी एक विस्तृत रचना 'श्रावकविधिरास' अथवा शुकराजरास भी प्राप्त है। इन रचनाओं का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा हैध्यानस्वरूप चौपाई का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है
सकल जिनेसर पाय वंदेवि, समरी माता सारद देवि । ध्यान तणें हूं करुं विचार, श्री जिणवचन तणे अनुसार । जीव तणो जे थिर परिणाम, कहिइ ध्यान तेहनु नाम ।
तेहे तणा छे च्यार प्रकार, दोय अशुभ दोय शुभ मनिधार । रचनाकाल -वर्षधर निधि सुधारुचिकला वछरइ (१९६१)
चैत्रवदि दसमी रविवार संगइ । ध्यान अधिकार अविकार सुख कारण, खंभनयरि रच्यो चित्त रंगइ ।
१. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ३९१-९२ (द्वितीय संस्करण) २. वही, भाग १ पृ० ५८१ (प्रथम संस्करण)
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