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भाव
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पढ़त सुनत नर बहु सुख लहे, भानुकीर्तिगणि अइसे कहे ।। भानुमंदिर शिष्य -बडतपगच्छीय धनरत्नसूरि के शिष्य भानुमन्दिर के इस अज्ञात शिष्य ने सं० १६१२ वैशाख शुक्ल ३, रविवार को पुण्यधरा ? में 'देवकुमार चरित्र' नामक अपनी १२८९ कड़ी की वृहद् रचना चार खंडों में पूर्ण की। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
सरसति सामिणि वीनवु मांगु निरमल बुद्धि,
कवित्त करिसि सोहामणु, देवो वचन विसुद्धि । इसमें मगध सम्राट् श्रेणिक प्रश्न पूछता है और भगवान महावीर उत्तर देते हैं, यथा--
कर कमल जोड़ी करि, श्रेणिक राय पूछंति ।
सात व्यसन संबंध तु मुझ प्रति तेह कहंति । सप्त व्यसनों के सम्बन्ध में भगवान उत्तर देते हैं
वर्द्धमान बलतुं कहि, सुणि राजन सुविचार,
चरित्र तास कौतक घj, कहीइ तेह विचार । अन्त में चंद्रगच्छ के रत्नसिंह से लेकर उदयसागर, लब्धिसागर, धनरत्न, भानुमंदिर तक गुरुओं का वर्णन किया गया है । रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है
तस सेवक कीधी चपइ, संवत सोल वारोत्तरि हई।
विशाख सुकल त्रीज रविवार, नगर पुण्यधरा मझारि । अन्त- देवकुमार चरित्र वर परिपूर्ण हवु रास,
भानुमंदिर शिष्य इम कहि चतुर्थ हउ उल्लास ।२
भाव या अज्ञात-आपके सम्बन्ध में विवरण नहीं ज्ञात हो सका है । 'पाप पुण्य चौपाई' नामक रचना में 'भाव' शब्द आया है लेकिन
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९८४ (प्रथम संस्करण) और भाग ३
पृ० २१३ (द्वितीय संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० ६६२-६४ (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० ५३-५४
(द्वितीय संस्करण)
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