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________________ ३२२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भवान -तपागच्छीय सोमविमलसूरि के शिष्य थे। आपने सं० १६२६ में ४८३ कड़ी की रचना 'वंकचूल रास' पाटण में लिखी। कवि ने इसका रचना काल इस प्रकार बताया है संवत सोल छवीसमे रास रच्यो उल्हासि, सुकल पक्षि दसमी दिने सोहिया चोमासि । प्रारम्भिक मंगलाचरण के अन्तर्गत कवि ने आदि जिणेसर, अजित, सुमति, चंद्रप्रभ, शांतिदेव, नेमिनाथ और महावीर आदि तीर्थंकरों की वंदना की है, फिर कवि कहता है साचोरे श्री वीरज वंदो, कंदो पूरब पाप, दोहग दुरगति दूरे पलाइ, थाई निरमल आप । सहि गुरु पय प्रणमी ने बालिसु, बंकचूलनो रास । सरसति सामिणि पाइ लागु, मांगु वचन विलास ।' मुरु परंपरा इस प्रकार बताई गई है तपगछि गुरुओ गुणनिलो सोमविमल सूरीश, परिवार सहित ओ गुरुवली, प्रतिपो कोडि वरीस । कासमीरपुर पाटणि जिहां मूलनायक पास, चरण कमल तेहना नमी, कीधों बंकचूल रास । अंतिम पंक्ति में कवि के नाम की छाप है कहि कवियण ने सांभले, हीय धरी बहू ध्यान, ते पामे शिव संपदा, कहे करजोडि भवान ।।४८३॥२ भानुकीर्तिगणि-आप दिगम्बर परम्परा के भट्टारक और साहित्यकार थे। अपने सं० १६७८ में 'आदित्यवार कथा' (२५ कड़ी) की रचना की। इसके आदि और अन्त की पंक्तियाँ प्रस्तुत हैंआदि श्री सुखदायक पास जिणेस, सिमरों भव्य पयोज दिनेस । सिमरों शारदा पग अरविंद, दिनकर प्रगट्यो पास जिणंद । अंत-संवत वसु मनु शशि की कला, विस्तृत कविता यह निरमला। १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १५२-५३ (द्वितीय संस्करण) और भाग - ३ पृ० ७१६-७१७ (प्रथम संस्करण) २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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