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भद्रसेन
की कथा निबद्ध है। इसकी भाषा सरस एवं प्रसाद गुण सम्पन्न है।" यह आचार्य ध्रुव (आनंदशंकर ध्रुव) स्मारकग्रन्थ में प्रकाशित है। रचना दोहा छंद में है, बीच-बीच में कुछ गाथायें भी दी गई हैं । प्रारम्भ के दो दोहे निम्नलिखित हैं
स्वस्ति श्री विक्रमपुरे, प्रणमी श्री जगदीश, तनमन जीवन सुखकरण, पूरण जगत जगीस वरदायक वरसरसती, मति विस्तारण मात.,
प्रणमी मनि धर मोद स, हरण विघन संघात ।।२ यह रचना बीकानेर में हुई। गुरुपरंपरा का पता नहीं चल पाया परंतु कवि खरतरगच्छीय आचार्य जिनराज सूरि का भक्त प्रतीत होता है। यथा
मम उपगारी परमगुरु गुण अक्षर दातार,
बंदी ताके चरण युग भद्रसेन मुनिसार । इसमें रचनाकाल भी नहीं है । अन्तिम दोहा यह है
दुष गयो मन सुख भयो, भागो विरह वियोग,
मात-पिता सुत मिलत ही, भयो अपूरव योग । जैन गुर्जर कविओ के नवीन संस्करण में इसका अपरनाम 'वार्तारास' भी बताया गया है। इसमें रचनाकाल सं० १७०९ से पूर्व कहा गया है। जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १०.८ पर सं० १७०९ की प्रतिलिपि प्राप्त कही गई है। ३ अतः यह रचना १७वीं शताब्दी के अन्तिम चरण की अवश्य होगी।
डा० कस्तूरचंद कासलीवाल ने भी इसे १७वीं शताब्दी की रचमा बताया है। उन्होंने ग्रन्थ सूची विवरण में इसे हिन्दी पद्य में रचित कथा बताया है। इसकी प्रति का प्राप्ति स्थान (दिगम्बर जैन मंदिर कोटडियों का) डूगरपुर बताया है।
१. हरीश शुक्ल ---जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता पृ० १२३-२४ २. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५९६-९८ (प्रथम संस्करण) ३. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० १८१-१८३ (द्वितीय संस्करण) ४. डॉ० कस्तूर चन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार की ग्रन्थ सूची भाग ५ पृ० ४३७
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