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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
इससे प्रमाणित होता है कि ये १७वीं शताब्दी के लेखक थे । डॉ० हरीश का यह कथन है कि ये १७ वीं शताब्दी के प्रथम चरण के कवि थे किन्तु इस रास में दिये रचनाकाल से वह अप्रमाणिक लगता है । डा० हरीश ने और कोई नवीन सूचना नहीं दी है ।
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भगवतीदास - अंबाला जिले के बूढ़िया नामक स्थान के निवासी श्री किसनदास अग्रवाल के पुत्र थे । भगवतीदास बूढ़िया से दिल्ली चले आये थे | आप काष्ठासंघ - माथुरगच्छीय भट्टारक गुणचंद्र > सकलचंद्र> महेन्द्रसेन के शिष्य थे । आपके समय दिल्ली में जहाँगीर का शासन था । आपकी उपलब्ध रचनायें प्रायः सं० १६८२ से लेकर • सं० १७१५ के बीच लिखी गई हैं अर्थात् आप १७वीं शती के अंतिम और १८वीं के प्रथम चरण के कवि थे । इनकी २५ रचनायें प्राप्त हैं, जो दिल्ली, आगरा, हिसार आदि अनेक स्थानों पर लिखी गई हैं । ये रचनायें अध्यात्म और भक्तिभाव से पूर्ण हैं । इनकी भाषा सरल, सरस हिन्दी है । उनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है । मुगतिरमणीचूनड़ी -- यह एक रूपक काव्य है । इसकी रचना सं० - १६८० में बूढ़िया में ही हुई थी । इसमें ज्ञानरूपी जल एवं सम्यक्त्व रूपी रंग में रङ्गी अध्यात्मिक चूनड़ी का वर्णन किया गया है । इसमें कुल ३५ पद्य हैं । लगता है कि दिल्ली आने से पूर्व अपने पैतृक स्थान पर ही यह रचना कवि ने की थी ।
लघु सीतासतु – सं० १६८४ में आपने वृहत्सीतासतु लिखा, फिर - सं० १६८७ में उसे संक्षिप्त करके चौपाई बद्ध किया । इसमें कवि ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है
गुरु मुनि महिंद सैण भगौती, रिसिपद पंकज रेणु भगौती, कृष्णदास बनि तनुज भगौती, कुरिय गह्यौ व्रतु मनुज भगौती । नगर बूडिये वासि भगौती, जन्मभूमि चिरु आसि भगौती । अग्रवाल कुल वंश लगि, पंडित पद निरखि भमि भगोती ॥ २
इसमें पिता, गुरु, वंश का परिचय वही है जो पहले लिखा गया है किन्तु निवास स्थान बूढ़िया की जगह चूड़िया कहा गया है । लगता
१. डा० हरीश- - जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी को देन पृ० ९८- १०० २. डॉ० कस्तूर चन्द कासलीवाल - राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार की ग्रन्थ सूची भाग ५ पृ० ३८
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