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बीरचंद
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हरषी हरषी-निज नयणीउ वयणीउ साह सुरंग,
दंत सुपंती दीपंती, सोहती सिरवेणी बंध । नेमि के विरक्त होकर चले जाने के बाद राजुल का विलाप बड़े मार्मिक ढंग से व्यक्त हुआ है - कनकमि कंकण मोड़ती, तोड़ती, मिणिमिहार,
___ लुचती केश कलाप विलाप कर अनिवार । नयन नीर काजलि मलि, रलवलि भामिनी भूर,
किम करुं कहि रे सहिलड़ी, विहिनडि गयो मझनाह ।' कवि ने इसमें रचनाकाल नहीं दिया है। जंबूस्वामीबेलि की भाषा पर डिंगल का प्रभाव दिखाई पड़ता है। इसमें भी रचनाकाल: नहीं है। भाषा की दृष्टि से ये रचनायें अध्ययन करने लायक हैं, अन्यथा काव्यत्व तो सामान्य कोटि का ही है। इसमें दूहा, त्रोटक एवं चाल छंदों का प्रयोग हुआ है।
जिन आंतरा-एक तीर्थंकर से दूसरे तीर्थंकर के बीच का अन्तर बताने वाली रचना है। संबोधसत्ताणुभावना (५७ पद्य) दोहे छंद में एक उपदेशपरक रचना है । दोहे शिक्षाप्रद एवं भावपूर्ण हैं, यथा
दया बीज विण जे क्रिया ते सधली अप्रमाण, शीतल सजल जल भर्या नेम चंडाल न बाण । कंठ विहणू गान जिम, जिम विण व्याकरणे वाणि,
न सोहे धर्मदया बिना, जिमभोयणविण पाणि ॥२ सीमंधरस्वामीगीत-सीमंधर के स्तवन में एक लघु गीत है। 'चित्त निरोधककथा' (१५ पद्य) में चित्त को वश में रखने का उपदेश दिया गया है । 'बाहुबलिवेलि' में बाहुबली की कथा त्रोटक, रागसिंधु आदि विविध छंदों और रागों में कही गई है। 'नेमिकुमार रास' नेमि की वैवाहिक घटना पर आधारित अच्छी कृति है। यह सं० १६७३ में लिखी गई । कवि ने रचना काल इस प्रकार बताया है
संवत सोल ताहोत्तरि श्रावण सुदि गुरुवार,
दसमी को दिन रूयडो, रास रच्यो मनीहार । १. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल-- राजस्थान के जैन संत पृ० १०९ २. वही
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