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________________ ३१४ पुरी उजैनी कविनिको दासु, बिस्नु तहां करिरह्यौ निवास । मन वचक्रम सुनी सबु कोइ, वंध्या सुनै पुत्रफल होइ । रचना का प्रारम्भ प्रथम नवति वंदौ जिन देव, ताके चरननि प्रनऊ सेव, औह गौतम गनराजु मनाइ, मुनि सारद के लागी पाइ ॥ १ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास - 1 बीरचंद - आप भट्टारक लक्ष्मीचंद्र के शिष्य थे । इनका सम्बन्ध सूरत की भट्टारकीय गादी से था । आपकी व्याकरण एवं न्यायशास्त्र में विशेष गति थी । छंद, अलंकार और संगीत में भी रुचि थी । ये वादशिरोमणि कहे जाते थे । साधुचर्या का कठोरता से पालन करते थे । नवसारी के शासक अर्जुन जीवराज इनका बड़ा सम्मान करते थे । भट्टारक शुभचंद्र, सुमतिकीर्ति और वादिचंद आदि ने अपनी रचनाओं में वीरचंद की प्रशंसा की है । वे संस्कृत, प्राकृत, गुजराती और हिन्दी के अच्छे विद्वान् तथा लेखक थे । उनकी आठ रचनायें उपलब्ध हैं - वीरविलासफाग, जम्बूस्वामीबेलि, जिनआंतरा, सीमंधरस्वामी गीत, संबोधसत्ताणु, नेमिनाथरास, चित्तनिरोधकथा और बाहुबलिबेलि । I जिसमें २२ वें तीर्थंकर नेमिगया है । इसमें कुल १३७ वीरविलासफाग एक खण्ड काव्य है नाथ की जीवन घटनाओं का वर्णन किया पद्य हैं । रचना के आरम्भिक अंशों में नेमि के सौन्दर्य और बाद के पद्यों में राजुल की शोभा का मनोहर वर्णन है । नेमि की शोभा का वर्णन इन पंक्तियों में प्रस्तुत है ―― वेलि कमलदल कोमल, सामल वरण शरीर, त्रिभुवनपति त्रिभुअन निलो, नीलो गुणगंभीर, लीलाललित नेमीश्वर अवलेश्वर उदार, प्रहसित पंकज पांखडी अंखडी रूप अपार । Jain Education International राजुल की सुन्दरता इन पंक्तियों में वर्णित है कठिन सुपीन पयोधर, मनोहर अति उत्सङ्ग, चंपकवर्णी चंद्राननी, माननी सोहि सुरङ्ग । कामता प्रसाद जैन - हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ० १३० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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