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बालचन्द्र - लोकागच्छीय रूपचंद > जीवजी > कुंवरजी > रतनजी, > श्रीमलजी > गंगदास के शिष्य थे । आपने सं० १६८५ दीपावली, अहमदाबाद मैं 'बालचंदबत्तीसी' की रचना की । इसमें गुरुपरंपरा उपरोक्त ढंग से विस्तृत रूप में दी गई है । इसलिए केवल उदाहरणार्थ इसके आदि और अंत के पद्य दे रहा हूँ । यह रचना जैनप्रकाश, (भावनगर) पृ० ३०३ से ३१२ पर प्रकाशित है । आदिसकल पातिकहर, विमल केवलधर,
जाको वासो सिवपुर तासु लग लाइये । नादविद रूपरंग, पाणि पाद उत्तमंग,
आदि अंत मध्य भगा जाकू नहि पाइये |
बालचन्द्र
संघेण संठाण जाण, नहि कोई अनुमान,
भणे मुनि बालचंद सुनो हो भविक वृन्द,
अजर अमरपद परमेसर को ध्याइये । ' अन्त में गुरुपरंपरा और रचनाकाल आदि भी है, यथाश्रीय रूप जीव गणि कुंअर श्रीमल्ल मुनि,
रतन सीस जास धनी त्रिभुवन मानियें । विमल शासन जास मुनि श्री गंगदास,
ताही को करत ध्यान शिवपुर जाइये ।
हस्तदीक्षिततास बत्रिशी बखानिये । चाण वसु रस चंद (१६८५) दीवाली मंगल वृन्द,
इसमें कुल ३३ पद्य हैं ही परिष्कृत, प्रांजल एवं हिन्दी है ।
भणे मुनि बालचंद सुनो हो भविक वृन्द,
अहम्मदाबाद इदं रंग मन आनिये |
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महानंद सुखकंद रुपचंद जानिये ||२ । इनकी कविता की भाषा तथा भाव दोनों सरस हैं। इनकी भाषा सरल प्रवाहपूर्ण
कवि विष्णु - उज्जैन निवासी कवि विष्णु ने सं० १६६६ में 'पंचमीव्रतकथा' नामक काव्य लिखा है । इसमें भविष्यदत्त का संक्षिप्त चरित्र दिया गया है । कवि ने लिखा है
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१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २६६ (द्वितीय संस्करण )
२. वही, भाग १ पृ० ५४१-४२ (प्रथम संस्करण ) ३. डा० हरीश - जैन गुर्जर कविओ की हिन्दी कविता पृ० १२५
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