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________________ ३१३ बालचन्द्र - लोकागच्छीय रूपचंद > जीवजी > कुंवरजी > रतनजी, > श्रीमलजी > गंगदास के शिष्य थे । आपने सं० १६८५ दीपावली, अहमदाबाद मैं 'बालचंदबत्तीसी' की रचना की । इसमें गुरुपरंपरा उपरोक्त ढंग से विस्तृत रूप में दी गई है । इसलिए केवल उदाहरणार्थ इसके आदि और अंत के पद्य दे रहा हूँ । यह रचना जैनप्रकाश, (भावनगर) पृ० ३०३ से ३१२ पर प्रकाशित है । आदिसकल पातिकहर, विमल केवलधर, जाको वासो सिवपुर तासु लग लाइये । नादविद रूपरंग, पाणि पाद उत्तमंग, आदि अंत मध्य भगा जाकू नहि पाइये | बालचन्द्र संघेण संठाण जाण, नहि कोई अनुमान, भणे मुनि बालचंद सुनो हो भविक वृन्द, अजर अमरपद परमेसर को ध्याइये । ' अन्त में गुरुपरंपरा और रचनाकाल आदि भी है, यथाश्रीय रूप जीव गणि कुंअर श्रीमल्ल मुनि, रतन सीस जास धनी त्रिभुवन मानियें । विमल शासन जास मुनि श्री गंगदास, ताही को करत ध्यान शिवपुर जाइये । हस्तदीक्षिततास बत्रिशी बखानिये । चाण वसु रस चंद (१६८५) दीवाली मंगल वृन्द, इसमें कुल ३३ पद्य हैं ही परिष्कृत, प्रांजल एवं हिन्दी है । भणे मुनि बालचंद सुनो हो भविक वृन्द, अहम्मदाबाद इदं रंग मन आनिये | Jain Education International महानंद सुखकंद रुपचंद जानिये ||२ । इनकी कविता की भाषा तथा भाव दोनों सरस हैं। इनकी भाषा सरल प्रवाहपूर्ण कवि विष्णु - उज्जैन निवासी कवि विष्णु ने सं० १६६६ में 'पंचमीव्रतकथा' नामक काव्य लिखा है । इसमें भविष्यदत्त का संक्षिप्त चरित्र दिया गया है । कवि ने लिखा है --- १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २६६ (द्वितीय संस्करण ) २. वही, भाग १ पृ० ५४१-४२ (प्रथम संस्करण ) ३. डा० हरीश - जैन गुर्जर कविओ की हिन्दी कविता पृ० १२५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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