SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बनारसीदास ३११ इस तरह इसके अनेक प्रकाशन हुये हैं और हरबार कुछ नवीन सामग्री भी आई है। आत्मा किस प्रकार मिथ्यात्व के पर्दे से ढकी है, इसका रूपक के माध्यम से वर्णन करता हुआ कवि लिखता हैजैसे कोऊ पातुर बनाय वस्त्र आभरन, आवति अखारे निसि आठौ पट करिक, दुहूँ ओर दीवटि संवारि पट दूरि कीजै, सकल सभा के लोग देखें दृष्टि धरि के। तैसे ज्ञानसागर मिथ्याति ग्रंथि मेटि करि, ___ उमग्यो प्रगट रह्यौ तिहूँलोक भरिकै । ऐसो उपदेश सुनि चाहिये जगत जीत, सुद्धता संभारै जंजाल सौ निसरि कै । यह 'पातुर' की उपमा भी कवि की स्वानुभूत थी। अर्द्धकथानक में कवि ने स्वयं लिखा है कि एक समय वह आशिकी में दिन-रात डूबा रहता था। व्यापार, स्वास्थ्य सब गँवाने पर चेत हआ, और एक बार चेतने पर वह श्रेष्ठ जैन भक्त कवि हो गया। मोह मुक्त होने की स्थिति का वर्णन निम्न सवैये में द्रष्टव्य है पुन्य संजोग जुरे रथ-पाइक, माते मतंग तुरंग तबेले। मानि विभौ अंगयो सिरभार, कियो बिसतार परिग्रह ले ले। बंध बढाइ करी थिति पूरन, अन्त चले उठि आप अकेले। हारि हमालकी पोटली डारि कै, और दिवाल की ओट ह्व खेले ५१ इन्होंने अधिकतर संस्कारित भाषा का ही प्रयोग किया है किन्तु अपभ्रंश मिश्रित भाषा का प्रयोग एकदम नहीं छोड दिया था क्योंकि वह काव्य की रूढ शैली के रूप में बराबर प्रयुक्त हो रही थी। मोक्षपदी से इस संदर्भ में भाषा के उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियाँ उद्धृत कर रहा हूँ--- इक्क समय रुचिवंतनो गुरु अक्खै सुवमल्ल, जो तुझ अंदर चेतना वहै तुसाड़ी अल्ल । डा० कस्तूरच न्द कासलीवाल ने प्रशस्तिसंग्रह पृ० २४१पर बनारसी विलास से और पृ० २५८ पर समयसार नाटक, कल्याण मंदिर १. हिन्दी काव्य गंगा-प्रकाशक नागरी प्रचारिणी सभा, काशी पृ० १३६ १३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy