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बनारसीदास
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लाल दलीचन्द देसाई ने अपने साहित्येतिहासों के ग्रंथों में इनको अपेक्षित महत्व नहीं दिया है ।
रचनाओं का विवरण-नाममाला की रचना सं० १६७० आश्विन सुदी १०, जौनपुर में हुई। यह छोटा सा शब्दकोष है। इसमें १७५ दोहे हैं। धनंजय की नाममाला के आधार पर इसकी रचना की गई है किन्तु इसमें संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी के नये शब्दों का समावेश होने के कारण यह मौलिक रचना बन गई है।
नाटक समयसार-यह महाकवि की श्रेष्ठ रचना मानी जाती है। यह रचना कुन्दकुन्दाचार्य कृत समयसार पाहुड़ (प्राकत) पर लिखी अमृतचंद्रकृत आत्मख्यातिटीका (संस्कृत ९वीं शताब्दी) पर आधारित है। इस पर पांडे राजमल्ल ने हिन्दी गद्य में बालबोधिनी टीका लिखी थी पर इसका यह अर्थ नहीं कि समयसार नाटक मात्र अनुवाद है, यह पर्याय मौलिक रचना है। 'आत्मख्याति' में २७७ कलश है जबकि समयसार नाटक में ७२७ है। इसमें टीका के कलशों से अभिप्राय अवश्य ग्रहण किया गया है किन्तु दृष्टान्तों, उपमा-उत्प्रेक्षाओं द्वारा कवि ने अपने कलशों को ऐसा सजाया है कि इनसे रसानुभूति होती है। सारांश यह कि कविप्रतिभा ने नीरस आध्यात्मिक विषय को सरस काव्यकृति का मौलिक रूप दे दिया है। पाहुड और उसकी टीका दर्शन के ग्रंथ हैं जबकि नाटक समयसार में कवि की भावुकता, रसपेशलता आदि लक्षित होती है। उसमें जीव-अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष नामक सात तत्व अभिनेता है। जीव नायक और अजीव प्रतिनायक है । आत्मा के स्वभाव और विभाव को नाटक के ढंग पर दर्शित करने के कारण इसे नाटक कहा गया है। इसमें रूपकत्व और भक्ति दर्शन का अच्छा परिपाक हआ है। विषय सुख के लिए भटकते जीव की स्थिति इन पंक्तियों में देखिये-- काया चित्रसारी में करम परजंक भारी,
माया की संवारी सेज चादर कलपता, सैन करै चेतन अचेतनता नींद लिए
मोह की मरोर यहै लोचन को ढपना । उदै बलजोर यहै श्वास को सबद घोर,
विष सुखकारी जाकी दौर यहै सपना,
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