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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
मुनि भानुचंद से भी अध्ययन किया और उनके प्रति बड़ी श्रद्धा रखते थे। उसके बाद इनकी क्रमशः दो शादियां और हुईं। उनसे सात पुत्र और दो पुत्रियाँ हुईं, पर सभी कालकवलित हो गये । इसका कवि के मन पर बड़ा उदास प्रभाव पड़ा। पढ़ाई लिखाई तो ठीक से नहीं हो पाई, पर बनारसी दास में कविप्रतिभा जन्मजात थी। १५ वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने 'नवरस' नामक सरस काव्य की रचना की थी जिसे बाद में उन्होंने गोमती में प्रवाहित कर दिया।
आप श्रीमाल वंश और विहोलिया गोत्र के वैश्य थे। रोहतक के पास विहोली नामक गाँव के आधार पर इनका गोत्र विहोलिया हो गया था। यद्यपि आपका जन्म श्वेताम्बर परिवार में हुआ था परन्तु ये श्वेताम्बर-दिगम्बर की रूढ़ सीमाओं में बँधे नहीं थे। उस समय आगरे में आध्यात्मिकों की एक शैली या गोष्ठी थी। बनारसीदास उसके प्रभावशाली सदस्य थे। पांडेराजमल्ल कृत समयसार की टीका पढ़कर इनकी अध्यात्म की ओर अभिरुचि बढ़ी जो पाण्डेय रूपचंद से गोम्मटसार पढ़ कर और पुष्ट हई। इनके पांच साथी- रूपचंद्र, चतुर्भुज दास, भगवतीदास, कुंवरपाल और धर्मदास थे। इन लोगों ने उच्चकोटि का साहित्य निर्माण किया है । इन लोगों ने अध्यात्मवाद को अनुभूतिमय काव्य का रूप दिया। बनारसी दास के बाद का हिन्दी जैन साहित्य उनकी रचनाओं से काफी प्रभावित हुआ है। कहा जाता है कि इनकी तुलसीदास से भेंट हुई थी पर अर्धकथानक' में इसका उल्लेख नहीं है। इनकी भेंट संत सुन्दरदास से हुई थी, दोनों समकालीन थे। सुन्दर ग्रन्थावली के सम्पादक पं० हरनारायण शर्मा ने इस भेंट का उल्लेख किया है लेकिन अर्धकथानक में इसका भी उल्लेख नहीं है।
रचनायें - बनारसीदास ने अर्द्धकथानक के अतिरिक्त नाममाला, नाटक समयसार, मोह विवेक युद्ध और मांझा आदि कई रचनायें की हैं। इनकी रचनाओं का एक वृहद् संग्रह 'बनारसी विलास' नाम से प्रकाशित हो चुका है। नवरस, जिसे इन्होंने यमुना में प्रवाहित कर दिया १००० पद्यों की विशाल रचना थी। इस प्रकार इन्होंने विपुल साहित्य का सृजन किया किंतु श्री अगर चन्द नाहटा और श्री मोहन
१. पं० नाथूराम प्रेमी-अर्द्ध कथानक भूमिका पृ० ९०
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