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बनवारी लाल
कवि ने रचना का विवरण देते हुए कहा हैरास गाथा संख्या पांचसि उगणीस व्यारि,
ढाल पञ्चवीस सरस अति सुणो नरनारि ।
इसका कलश देखिये -
वस्तपाल तेजपाल समोवडि अणि जग नहीं कोय ओ, जस दान आगलि देव हारि, सुणो भविजन सोय अ । आखराज नन्दन जगआणंदन तास कुअर माय ओ, कहि प्रेमविजय मुनि प्रेमइ आणी, भणत सुणत सुख थाय अ ।। "
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शत्रुञ्जय स्तवना (आदिनाथविनति रूप ) - ' शत्रुञ्जय तीर्थमालारास' में प्रकाशित है । इसमें रचनाकाल नहीं है; गुरुपरंपरा वही है जो अन्य ग्रन्थों में बता चुके हैं, अतः नमूने के रूप में इसका भी कलश प्रस्तुत है
इम थुण्य स्वामी मुक्ति गामी, आदि जिन जगदेव ओ, नित्य नमे सुर नर असुर व्यंतर करे अहोनिश सेव ओ । जे भणें भगतें भली युक्त, तस घर जयजयकार अ, कहे कवियण सुणो भवियण, जीम पावो भवपार ओ ।
इनकी अन्य दो रचनाओं - धनविजयपन्यास रास और सीतासती सञ्झाय का विवरण उद्धरण उपलब्ध नहीं हो सका । सीतासती सञ्झाय 'जैन सञ्झाय संग्रह' में प्रकाशित है । इनकी छह उपलब्ध कृतियों में से वस्तुपाल तेजपालरास, जो ऐतिहासिक राम है, को छोड़कर शेष पांच रचनायें अध्यात्म और धर्म-दर्शन, पूजापाठ से सम्बन्धित हैं । इन कृतियों के विवरण - उद्धरण से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रेमविजय एक कुशल कवित तथा संत थे ।
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बनवारी लाल - आप माखनपुर के निवासी थे । आपने सं १६६६ में 'भविष्यदत्त चरित्र' नामक काव्य खतौली के चैत्यालय में रहकर पूर्ण किया । यह धनपाल के ग्रन्थ का पद्यानुवाद है । इसमें वणिक्पुत्र भविष्यदत्त की महत्ता और वीरता का वर्णन किया गया है । वणिक्पुत्र भविष्यदत्त अपने राजा (हस्तिनापुर नरेश ) के शत्रु से १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ३९७-९८ और भाग ३ पृ० ८८५-९० (प्रथम संस्करण ) २०
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