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________________ ३०४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कवि ने रत्नहर्ष के सान्निध्य में रह कर इस ग्रन्थ की रचना की, इसमें रचनाकाल इस प्रकार लिखा है संवत सोल बासठ, वैशाख पुन्यम जोय, वार गुरु सहि दिन भलो, अ संवत्सर होय । इससे पूर्व इन्होंने सं० १६५९ (पौष वद १, मुरुवार, खंभात) में 'तीर्थमाला' की रचना की थी। कवि ने रचनाकाल इन पंक्तियों में लिखा हैसंवत ससि रस सार, भणु वेद भल इं वार, __ पोष वदि गुरुवार षडवेनु दिनसार । इसमें जो गुरुपरंपरा कवि द्वारा बताई गई है उससे वे विनयहर्ष के नहीं बल्कि विमलहर्ष के ही शिष्य सिद्ध होते हैं यथा श्री विमलहर्ष सरताजिइ, वाचक पदवी छाज्जइ; तस सीस प्रेमविजय नाम, मांगि शिवपुरि ठाम ।' आपकी तीसरी रचना 'वस्तुपाल तेजपाल रास' प्रसिद्ध अमात्य बन्धुओं के जीवन चरित पर आधारित है। यह २५ ढाल और ५०४ कड़ी की लम्बी रचना है। यह रचना सं० १६७७ आसो सुदी १० को पूर्ण हुई । इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है :प्रथम रीषभ जिनराय मुनी, प्रथम आदि दातार, जुगला धर्म निवारयो नाभिनृपकुल सणगार । x कासमेर मुख मंडणी हंसवाहण जस बार जोयणु; ब्रह्मसुता गुण आगली, कर पुस्तक वीणा तेय बखाणुं । इस रास में अनेक ऐतिहासिक महत्व की घटनाओं का स्थानस्थान पर उल्लेख मिलता है जैसे सम्राट अकबर द्वारा हीर विजयसूरि और विनयसेन सूरि का सम्मान आदि । रास-रचना का समय कवि ने इन शब्दों में लिखा है-- संवत विधु रस लेश्या वार प्रमाण, __ आसो सुदि दसमी सुणज्यो चतुर सुजाण ।' १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ३८२-३८३ (द्वितीय संस्करण) . २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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