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पुण्यसागर.II
२०१ श्री पुण्यसागर दीर्घायु संत थे। इनके कई शिष्य श्रेष्ठ साहित्यकार थे, जिनमें पद्मराज और जिनसुन्दर आदि की चर्चा पहले की जा चुकी है। इन्होंने तथा इनके शिष्यों-प्रशिष्यों ने बड़ा साहित्य प्रस्तुत किया है। इन लोगों ने मिलकर कई संस्कृत ग्रंथ एवं विद्वत्तापूर्ण टीकायें भी लिखी हैं। पुण्यसागर ने 'प्रश्नोत्तरकाव्यवृत्ति' सं० १६४० और 'जम्बूद्वीप पन्नतिवृत्ति सं० १६४५ जैसलमेर में राजा भीम के शासन काल में लिखा था। श्री देसाई ने उक्त दोनों मरुगुर्जर की रचनाओं की कई प्रतियों का विवरण दिया है, जिससे इन रचनाओं की लोकप्रियता प्रमाणित होती है। इनकी कृति नेमि राजर्षिगीत (पद्य ५४) जैन जगत् के जाने-माने काव्य नायक नेमिकुमार एवं राजीमती की लोकप्रिय कथा पर आधारित एक मार्मिक गीत है। इसके अलावा इनके अनेक स्तवन आदि भी उपलब्ध हैं।
पुण्यसागर II-पीपलगच्छ के लक्ष्मीसागर सूरि की परंपरा में कर्मसागर आपके गुरु थे। आपकी दो रचनाओं का उल्लेख मिलता हैनयप्रकाश रास सं० १६७७ और अंजनासुन्दरीरास । दूसरा रास ३ खण्डों में विभक्त है । इसमें २२ ढाल और ६३२ कड़ी है । यह रास सं० १६८९ श्रावण शुक्ल ५ को पूर्ण हुआ। श्री मो० द० देसाई ने जैनगुर्जर कविओ भाग १ (पृ० ५३०.३३) में इसके दो पाठान्तर दिये हैं। इनमें से एक पाठ में कवि ने अपनी गुरुपरंपरा के अन्तर्गत पीपलगच्छ के लक्ष्मीसागरसूरि>विनयराज और कर्मसागर का उल्लेख किया है. किन्तु दूसरे पाठ में कवि का नाम पुण्यभुवन है, यथा
पुण्यभुवन कहे भाव धरी घणो गिरुया नो जसवास ।
अधिक ओछो इहाकणि जे कर्यो, हुवे मिच्छामिदुक्कडतास ।' इस पाठ में कवि की गुरु परंपरा भी खतरगच्छ के जिनराजसूरि> जिनरंगसूरि की बताई गई है। यह पाठ भ्रमवश पुण्यसागर के साथ जुट गया लगता है। यह वस्तुतः खरतरगच्छीय पूण्यभवन की कृति 'पवनंजन अंजना सुन्दरीचरित्ररास' की प्रशस्ति का पाठ है। श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १०२७-२८ पर इसका रचनाकाल सं० १६८९ श्रावण शुक्ल ५ ही बताया है। यही समय मूलपाठ में भी दिया गया है, यथा१. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५३३ (प्रथम संस्करण)
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