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________________ ३०० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १६०४ बताया है, ' वही ठीक लगता है । श्री कस्तूरचंद कासलीवाल ने रचनाकाल सं० १६७४ बताया है, लेकिन वह संगत प्रतीत नहीं होता है । कवि ने स्वयं रचनाकाल इस प्रकार बताया है संवत सोल चडोतर बरसइ, जेसलमेरु नयर सुभदिवसइ, श्री जिनहंससूरि गुरु सीसइ, पुण्यसागर उवझाय जगीसइ । श्री जिन माणिक सूरि आदेसइ, सुबाहुचरित भणियउ लवलेसइ । पास पसायइ ओ रिषि थुणतां, रिद्धि सिद्धि थायउ जितु भणता । अर्थात् यह रचना जिनहंस सूरि के समय या उसके कुछ आस-पास ही रची गई होगी । अतः चडोतर का अर्थ चार तो ठीक लगता है पर चौहत्तर उचित नहीं लगता । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं पणमी पास जिणेसर केरा, पयपंकज सुरतरु अधिकेरा, जसु समरण सीझइं बखाणी, ते गुरु सुयदेवी मन आणी । वीर जिणंद इग्यारम अंगइ, सोहम आगलि सुखदुख भंगइ, सुख विपाक बीजइ सुय खंधइ, दसम अज्झयण तणइ परवंधइ | इनकी दूसरी रचना साधुवंदना (८८ गाथा ) के अलावा कई अन्य स्तवनादि श्री अगरचन्द नाहटा के संग्रह में उपलब्ध हैं । " साधुवंदना - का प्रारम्भ इस प्रकार है पंच परमेठि पयकमलवंदीकरी; ---- साधु भगवंत नै नामग्रहण करी, भावबलिमाल लि अह अंजलि धरी, जम्म सुपवित्त हुं करिस श्रुत अणसरी ||१ अंत-इम सुगुरु श्री जिनहंससूरिस, तासु सीसें अभिनवो । उवझाय वर श्री पुण्यसागर कहै अ रिषि संथवो । उपदेश श्री जिनचंद्र सूरीसर तणे जे मुनि थुणे, तसु साधुवंदण सुहानंदन हवउ सिवसुखकारण ४ - १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १९-२१ (द्वितीय संस्करण ) २. डॉ० कस्तूर चन्द कासलीवाल - राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार की ग्रन्थ सूची भाग ५ पृ० ४१७ Jain Education International ३. श्री अगर चन्द नाहटा - परम्परा पृ० ७२ ४. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० १८८ और भाग ३ पृ० ६५३-५५ (प्रथन संस्करण ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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