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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
षट्दर्शन ना ग्रंथ में अंजना केरी मे बात,
पवनसुत हनुमंत ना प्रगट घणा अवदात ।' इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ निम्नांकित हैंश्री गणधर गौतम प्रमुख, ऐकादश अभिराम ।
मन वांछित सुख संयजे, नित्त समरतो नाम । पवनंजय राजा तणी अंजना सुन्दरि नारि,
तासु कथा सुणतां थका, होसि अल्प संसार । सति शिरोमणि अंजना, सील विभूषित देह
नाम जयंता प्रह समे आये रिद्धि अछेह ।
पुण्यरत्नसूरि-आंचलगच्छीय सुमति सागर सूरि>गजसागर सूरि के आप शिष्य थे। आपने सं० १६३७ वैशाख वदी ५ रविार को 'सनतकुमाररास' नामक २८१ गाथा की एक रचना पूर्ण की । इसके अंत में विधिपक्ष के आर्यरक्षित से लेकर जयसिंह सूरि, धर्मघोषसूरि, महेन्द्रसिंह, सुमतिसागर और उनके शिष्य गजसागर सूरि तक का वंदन किया गया है । परम्परा के अंत में कवि ने लिखा है
तस सीस अ भणज्यो, पुण्यरत्न कहि रास रे,
भणइ गणइ जे संभलइ तेहनी पुहवुवइ आस रे । रचनकाल–संवत सोल वे जाणज्यो साउन्नीसउ ते सार रे,
वैशाख वदि भला पंचमी, रास रच्यउ रविवार रे । सनतकुमार रास की कथा का प्रारम्भ करता हुआ कवि लिखता हैकंचणपुर नयर अतिहि अनोपम सार,
विक्रम यश राजा राज करइ सुविचार । पांचसि राणी वाणी सुधाय समान,
रिद्धि बुद्धि पूरा सूरा बहूय प्रधान । अन्तिम पंक्तियाँ-पास जिनवर अमर सुखकर तरण तारण ततपरा,
तस्य आस पूरइ विधान चूरइ सधा सिखर जिनवरा । १. जैम गुर्जर कविओ भाग ३ खण्ड २ पृ० १५१७-१९ (प्रथम संस्करण) २. वही ३. वही, भाग २ पृ० १६६-१६७ (द्वितीय संस्करण)
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