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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
इसलिए कई जैन विद्वानों ने इस काव्य की टीकायें संस्कृत व राजस्थानी भाषा में की हैं। इसी रचना के आधार पर आप राजस्थानी भाषा के सर्वश्रेष्ठ कवियों में गिने जाते हैं। कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप जंगल की खाक छानते-छानते एक बार निरुत्साहित हो गये थे तब इन्हीं के एक प्रभावशाली पत्र ने ऐसी प्रेरणा दी कि पुनः प्रताप अपना इरादा बदल कर दृढ़ निश्चय के साथ हिन्दुत्व की रक्षा और मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए युद्ध में जुट गये थे। यद्यपि ये स्वयं अकबर के दरबारी थे किन्तु जाति और देश का स्वाभिमान इनमें बहुत था तथा उसकी स्वतन्त्रता इन्हें भी अभीष्ट थी।
पुजाऋषि --पार्वचन्द्र गच्छ के विद्वान् हर्षचन्द्र आपके गुरु थे। आपने सं० १६५२ आसो शुद १५, बुधवार को पाटण में 'आरामशोभा चरित्र' (३३२ कड़ी) नामक काव्य की रचना की। यह रचना पं० लालचन्द द्वारा प्रकाशित है। इसकी भाषा शैली का नमूना देखने के लिए कुछ पंक्तियाँ उद्धृत की जा रही हैंआदि आदि जिणेसर पाय नमी शांती नेमिकुमार, श्री पास वीर चुवीसमउ, वंदिइ जय जयकार । x
x पूरब संचय पुन्यनउ उदय हुओ अभिराम,
तेह थकी तिणि पामीयु आरामशोभा नाम । रचनाकाल-सोल सई बावन्नई वली, आसो मास पनिम निरमली,
अश्वनी रखि बुधवारिइं करी, गुरु प्रसादि करी पूरण चरी। गुरुपरंपरा-श्री श्रीमाली वंशे बखाण,
श्री हंसचंद्र वाचक गुरु जाण, तास सीस रिषि पुजे कहइ,
भणइं गुणइते सिवसुख लहइ ।'
पुण्यकोति--आप खरतरगच्छीय महिमामेरु के प्र-प्रशिष्य हर्षचन्द के प्रशिष्य एवं हर्षप्रमोद के शिष्य थे, इन्होंने पुण्यसार रास सं० १६६६ सांगानेर, नेमिरास, रूपसेनरास सं० १६८१ मेड़ता; मत्स्योदर चौपइ १३. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ. २८६-२८८ (द्वितीय संस्करण) और भाग पृ० ८२०.८२२ (प्रथम संस्करण)
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