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________________ मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहासः आपकी दूसरी कृति 'अष्टप्रकारी पूजारास' सं० १६५६ में क्षेमपुर में लिखी गई । यह छोटालाल मगनलाल, अहमदाबाद से प्रकाशित है । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ उद्धृत कर रहा हूँ प्रथम तीर्थंकर प्रथम जिन प्रथम करी २९२ परिणाम, अष्ट प्रकार पूजा तणा प्रबन्ध कहुं अभिराम । इसमें सं० १५८२ में आनंद विमलसूरि द्वारा यतिपंथ के प्रकटीकरण से लेकर उनके पट्टधर विजयदान > हीरविजय > विजय सेन > धर्मसिंह > जयविमल तक की गुरुपरम्परा गिनाई गई है । अन्त में लिखा है तास सेवक गणि जयविमल सेवको, प्रीतिविमल क्षेमपुरी चउमासे, संवत सोलछपन वरसिं कव्या, सकल संघ मांही बेठो विमासे ।" तीसरी रचना 'दानशीलतप भावनारास' सं० १६५८ के पश्चात् किसी समय लिखी गई । इसमें विजयदेव सूरि के पट्ट पर विराजित होने की बात कही गई है और वे सं० १६५८ में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए थे, अतः यह रचना उसके कुछ बाद की होगी । इसका विषय तो इसके शीर्षक से ही स्पष्ट है । इनकी चौथी कृति का नाम 'गोडी पार्श्व स्तवन' है । यह ५ ढालों में लिखी गई और 'प्राचीन स्तवन रत्नसंग्रह' भाग २ में प्रकाशित है । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ उदाहरणार्थं प्रस्तुत हैं वाणी ब्रह्मावादनी, जागे जगविख्यात, पासतणा गुणगावतां, मुझ मुख वसज्यो मात । नारंगे अणहिलपुरे, अहम्मदाबादे पास, गोडीनो धणी जागवो पूरे सहुनी आस । आपकी पाँचवी रचना 'इर्यापथिकाआलोयणसझाय' १८ कड़ी की छोटी रचना है । यह 'प्राचीन संज्ञाय तथा पदसंग्रह' में प्रकाशित है । इनकी अधिकांश रचनायें पूजा-पाठ से सम्बन्धित हैं । मृगांककुमार पद्मावती में आख्यान का आधार लेकर उपदेश दिया गया है जबकि १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २६० २६३ (द्वितीय संस्करण) और भाग १ पृ० २९४-२९६ और भाग ३ पृ० ७९६-७९७ ( प्रथम संस्करण ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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