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________________ प्रीतिविमल १९१ गाथा की विस्तृत रचना है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियां निम्नांकित हैं प्रणमी शांति जिणेसर स्वाम, संपति लहीइ जेहने नाम, शांति जिणंद तणो उपदेश, सुणज्यो भविका कहुं लवलेस । प्रथम धरम जाती नो कहूँ, शांतिनाथ चरित्र थीं लहुं, क्षिति प्रतिष्ठित नगर मझार, धनी सार्थवाह तिहां सार । रचनाकाल-संवत सोल बहोत्तरो मान, मागसिर सुदि तेरसि जाण, सुहाला नगरे गुरुवार, रच्यो वारव्रत रास उदार । गुरुपरम्परा-तपगणग्यान विभासन भाण, श्री विजयदान सूरि गुणमणि षाण । तास सीस पंडित परधान, आणंद विजय गणि गुणह निधान, तस पद पंकज भ्रमर समान, जास नामे सघले जसमान । प्रीतिविजय कहे भणता अह, वंछित संपद आवे गेह।' आणंदविजय के समय को देखते हुए इसका रचना काल सं० १६७२ ही उचित लगता है। इसमें तत्सम शब्दों में प्रयोग की प्रवृत्ति लक्षित होती है। प्रीतिविमल-तपागच्छीय विजयेनसूरि के प्रशिष्य एवं धर्मसिंह के शिष्य जयविमल आपके गरु थे। आपने सं० १६४९ में 'मृगांक कुमार पद्मावती चौपाई' गुदवच में लिखी। इसमें गुरुपरम्परा और रचनाकाल इस प्रकार बताया गया हैतास सेवक शुभ सांभल्यो साचलो, गणि धर्मसी धुरि लगइ धर्मधोरी, तास सेवक गणि जयविमल कीति निरमली गोरी। गुदवच ग्राम गणधाम धरणि, संवत सोल उगणपंचासइ, सकल संभलइ सर्व आस्या फलइ, प्रीतिविमल मुनि कहइ उल्हामइ । १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २०३ (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० ५२ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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