________________
मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
तपछि सुहाकर गुणमणि आगर, प्रमोदशील पंडितवर, तसु शीस बोलइ अमीय तोलइ सीमंधर जयकार कर ।' आपकी अन्य कई रचनायें भी प्राप्त हैं जिनमें से २० विहरमान बोल ५ संयुक्त १७० जिननामस्तवन ( २६ कड़ी), बीरसेन सञ्झाय २५ कड़ी और खंधक सूरि सञ्झाय के विवरण आगे दिये जा रहे हैं । प्रथम रचना सं० १६१३ फाल्गुन शुक्ल १० को पूर्ण हुई जैसा कि इसकी अन्तिम पंक्तियों से विदित होता है, यथा
१९०
--
संवत सोल तेरोत्तरइ अ, फागुण सुदि दसमी जाणिउ, सत्तरिस जिन संयुण्या अ, ऊलट हीयडइ आणितु । बीरसेन सझाय की प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैंसरसति सामिणी पहिलु प्रणमीइ,
अविरल वाणी जेह नामि पामीइ । पामीर वाणी जेह नामिई तेहना पय प्रणमी करी । क्षमा सम्बन्ध हूं बोलू सांभलज्यो ऊलट धरी, नयरीय चंपा अतिहि रुपड़ी, तिहां जितशत्रु राजीऊ, पुर गाम देह करी मोटर सुजस महीयलि गाजऊ । १
खंधक सूरि सञ्झाय मात्र आठ कड़ी की रचना है । इसकी अन्तिम पंक्तियां नमूने के तौर पर दी जा रही हैं
खंधक सूरिनि धामिइ धाली पीलओ, अगनिकुमार पदवी पावओ, पावओ पदवी क्रोध कारणि देस तिहां बालिउ घणउ । दंडकारण्य नाम हूऊं क्रोध फल अहवां सुणु, तत शिष्ये पांचसिइ तिहां मुगति हेलां माहिवरी, प्रमोदशीलह शीस जंपइ धर्म करु क्षमा मनि धरी ।
प्रीतिविजय - तपागच्छीय विजयदानसूरि के प्रशिष्य एवं आणंदविजय के शिष्य थे | आपने सं० १६१२ (७२ ? ) माग शुद १३ गुरुवार को सुहाली नामक स्थान में 'वार व्रत रास' की रचना की । यह ४६१
१. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ६६-६७ (द्वितीय संस्करण)
२. वही, पृ० ६८
३. वही, भाग २ पृ० ६७ (द्वितीय संस्करण )
४. वही, भाग १ पृ० १९१-१९३ (प्रथम संस्करण)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org