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________________ २८८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जैन गुर्जर कवियो में एक अन्य परमल्ल नामक कवि को भी श्रीपालचरित्रभाषा नामक काव्य का हिन्दी में कर्ता लिखा गया है और उन्हें दिगम्बर बताया गया है पर श्री मोहनदास दलीचन्द देसाई ने इनका समय १९वीं शताब्दी में रखा है । वस्तुतः वह प्रतिलिपि का समय है। मूल रचना परमल्ल कवि ने १७वीं शताब्दी में (सं० १६५१) में ही की थी। देसाई ने 'श्रीपालचरित्रभाषा' की जो पंक्तियाँ उद्धृत की हैं उनमें से प्रारम्भिक दो पंक्तियाँ 'श्रीपाल चरित्र' की प्रारम्भिक पंक्तियों से पूर्णतया मिलती है। पंक्तियाँ निम्न हैं सिद्धचक्र विधि केवल रिद्ध गुन अनंत फल जाकी सिद्धि प्रणमो वरन सिद्धि गुरु सोइ, भवि संघज्यो मंगल होइ ।' अतः यह भी आशंका है कि ये दोनों परमल्ल और उनकी रचना श्रीपालचरित्र एक ही है। इस पर शोध अपेक्षित है। प्रभसेवक --आप मुखशोधन गच्छ के लेखक थे। आपने सं० १६७७७ में भगवती साधु वंदना की रचना की। यह ५९ कड़ी की रचना है । कवि की संस्कृत भाषा में अभिरुचि ज्ञात होती है जैसा कि इन उद्धरणों से प्रकट होता है, यथाआदि--स्तवीमि वीरं जिनसूर मंडलं प्रतापविस्तारित भूमि मंडलं, सुवर्णकान्ति नवदेवमंडलं, चमत्कृतं ताविष राजमंडलं ।। दोहा-प्रथम पंचम गणधर नत्वा परम गणीन्दु, वक्ष्ये भगवती भावितान् मुनिवरान् मुनीन्दं । साधुतणा गुण गावतां, पाम् सुख अनंत, दुषम कालि आलंबन भय भंजन भगवंत । इसके अंत में रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है - साधुतणा गुणगावता मुझ निजे परमानंद सारं, ते मुझ जांणि जीव अनि वली कि अंग नाणी धारं। निःकारण जगवंधू मि गाया, मुनि मुनि सोल सुशरदं, मुखशोधन गछि वदि प्रभसेवक मंगलकारण वरदं । १. जैन गुर्जर कविओं भाग ३ खण्ड २ पृ० १५६५ (प्रथम संस्करण) २. वही, भाग १ पृ०. ५०३ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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