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________________ -२८६ भारमल्ल राजा वड दवाजा करी थाप्या जिनवरु, श्री विजयसेन सूरींद सेवक पंडित परमाणंद जयकरु ॥७७॥ १ यह रचना कुल ७७ कड़ी की है और इसे कवि ने कच्छ के विजयाचिंतामणि मंदिर में लिखा था । मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास परिमल या परिमल्ल - आप गोपाचल या ग्वालियर निवासी वरहिया वैश्य कुल के चौधुरी चंदन के वंश में आसकरन के पुत्र थे । वरहिया ग्वालियर की एक सम्पन्न विरादरी थी । चौधुरी चंदन का - ग्वालियर के राजा मानसिंह के दरबार में सम्मान था । कवि ने अपनी प्रसिद्ध लोक प्रिय रचना 'श्रीपालचरित्र' में अपना वंशपरिचय इन पंक्तियों में दिया है - गोपाचल गढ़ उत्तिम थांन, सूरवीर तहाँ राजा मान, ताको दलु बलु बहुत असेस, गढ़ पै राजु करें सुनरेश । ता आगे चंदन चौधरी कीरति सबै जगत बिस्तरी, जाति वानिया (वरहिया) गुन गंभीर, अति प्रताप कुल मंडन धीर । २ बाद में आप ग्वालियर को छोड़कर आगरा चले आये थे । उस समय आगरा पर सम्राट् अकबर का शासन था । कवि ने सम्राट् के • सम्बन्ध में लिखा है - बब्बर पातिसाहि होइ गयौ, ता सुतु साहि हिमाउ भयौ, ता सुतु अकबरु साहि सुजानु, सो तप तपै दूसरी भानु । ताके राज न कहूँ अमीत, चलै विक्रमाजीत की रीत । अपने आगरे में बसने के सम्बन्ध में कवि ने लिखा हैता सुत रामदास परवीन, नन्दनु आसकरन सुखलीन, ता सुत कुलमंडन परिमल्ल, वसै आगरे में तज्जि सल्लु । कवि ने सम्राट् अकबर, नगर आगरा और नदी यमुना के साथ अपने वंश का भी विवरण रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है । सम्वत् Jain Education International १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १७० - १७१ (द्वितीय संस्करण ) २. हिन्दी हस्तलिखित ग्रन्थों की २० वीं त्रैमासिक रिपोर्ट नं० ४ नागरी प्रचारिणी सभा काशी पृ० ४६८ ३. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल - प्रशस्ति संग्रह पृ० २७१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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