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भारमल्ल राजा वड दवाजा करी थाप्या जिनवरु,
श्री विजयसेन सूरींद सेवक पंडित परमाणंद जयकरु ॥७७॥ १ यह रचना कुल ७७ कड़ी की है और इसे कवि ने कच्छ के विजयाचिंतामणि मंदिर में लिखा था ।
मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
परिमल या परिमल्ल - आप गोपाचल या ग्वालियर निवासी वरहिया वैश्य कुल के चौधुरी चंदन के वंश में आसकरन के पुत्र थे । वरहिया ग्वालियर की एक सम्पन्न विरादरी थी । चौधुरी चंदन का - ग्वालियर के राजा मानसिंह के दरबार में सम्मान था । कवि ने अपनी प्रसिद्ध लोक प्रिय रचना 'श्रीपालचरित्र' में अपना वंशपरिचय इन पंक्तियों में दिया है -
गोपाचल गढ़ उत्तिम थांन, सूरवीर तहाँ राजा मान, ताको दलु बलु बहुत असेस, गढ़ पै राजु करें सुनरेश । ता आगे चंदन चौधरी कीरति सबै जगत बिस्तरी, जाति वानिया (वरहिया) गुन गंभीर,
अति प्रताप कुल मंडन धीर । २ बाद में आप ग्वालियर को छोड़कर आगरा चले आये थे । उस समय आगरा पर सम्राट् अकबर का शासन था । कवि ने सम्राट् के • सम्बन्ध में लिखा है
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बब्बर पातिसाहि होइ गयौ, ता सुतु साहि हिमाउ भयौ, ता सुतु अकबरु साहि सुजानु, सो तप तपै दूसरी भानु । ताके राज न कहूँ अमीत, चलै विक्रमाजीत की रीत । अपने आगरे में बसने के सम्बन्ध में कवि ने लिखा हैता सुत रामदास परवीन, नन्दनु आसकरन सुखलीन, ता सुत कुलमंडन परिमल्ल, वसै आगरे में तज्जि सल्लु ।
कवि ने सम्राट् अकबर, नगर आगरा और नदी यमुना के साथ अपने वंश का भी विवरण रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है । सम्वत्
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१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १७० - १७१ (द्वितीय संस्करण )
२. हिन्दी हस्तलिखित ग्रन्थों की २० वीं त्रैमासिक रिपोर्ट नं० ४ नागरी
प्रचारिणी सभा काशी पृ० ४६८
३. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल - प्रशस्ति संग्रह पृ० २७१
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