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पद्मसुन्दर
२८३ इस प्रकार कथाकोश की विभिन्न कथाओं को दृष्टान्त रूप में प्रस्तुत करते हुए कवि पद्मसुन्दर ने दया, दान, शील, सम्यक्त्व और वैराग्य आदि का सन्देश मनोरम भाषा शैली में पाठकों तक अनेक रचनाओं के माध्यम से पहुँचाया है।
पद्मसुन्दर (३)-आप नागौरी तपागच्छ के विद्वान् साधु पद्ममेरु के शिष्य थे। इनके दादागुरु आनन्दमेरु का सत्कार हुमायू ने किया था। यह बात 'अकबरसाहि शृङ्गारदर्पण' नामक आपके ग्रन्थ से प्रमाणित होती है। बादशाह अकबर के दरबार के ३३ हिन्दू सभासदों के पाँच विभागों में से प्रथम विभाग में पद्मसुन्दर का नाम था। इससे प्रकट होता है कि प्रस्तुत पद्मसुन्दर का सम्राट अकबर के दरबार में सम्मान था। आप जोधपुर के राजा मालदेव द्वारा भी सम्मानित थे। आप अनेक दर्शनों के ज्ञाता कहे गये हैं। आपने अनेक ग्रंथ लिखे हैं । भविष्यदत्त चरित्र सं० १६१४, रायमल्लाभ्युदय सं० १६१५, पार्श्वनाथ चरित्र सं० १६१५, अकबरशाहि शृङ्गार दर्पण और जम्बूचरित आदि आपकी प्राप्त पुस्तकें हैं ।' सम्वत् १६३९ में जब अकबर की भेंट हीरविजयसूरि से हुई थी तब सम्राट ने इनकी पुस्तकों का संग्रह सूरिजी को भेंट किया था। प्रथम तीन ग्रन्थ रायमल्ल की प्रेरणा से लिखे गये थे। अग्रवाल रायमल्ल दिगम्बर सम्प्रदाय के श्रीमन्त थे और पदमसुन्दर श्वेताम्बर थे, किन्तु दोनों के पारस्परिक निकट सम्बन्ध को देखते हुए यह भी अनुमान होता है कि अकबर की समन्वयात्मक नीति के चलते इन दोनों सम्प्रदायों में भी पर्याप्त निकटता आ गई थी। रायमल्ल अग्रवाल थे और मुजफ्फरपुर जिले के चरथावल (चरस्थावर) के निवासी तथा राजसम्मान प्राप्त श्रीमन्त थे। कवि ने उनके पूरे परिवार की बड़ी प्रशंसा की है। इनकी किसी रचना का उद्धरण नहीं प्राप्त हुआ। जो विवरण उपलब्ध है, उससे पता लगता है कि माणिक्यसुन्दर के शिष्य पद्मसुन्दर और पद्ममेरु के शिष्य पद्मसुन्दर दो व्यक्ति थे।
परमा-लोकागच्छ के श्रीपत>तेजसिंह>सोभा>मोल्हा> वीरजी>धर्मदास>भानु> चतुर्भुज> राजसिंह के शिष्य थे। आपने
१. श्री नाथूराम प्रेमी-जैम साहित्य और इतिहास पृ० ३९५
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