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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहासा
तप ऊपरि सुन्दर सरस, जेह थी छूटी करम, सई मुखि कहि जिणवर असिउ, तप छि ऊतम धरम ।
इससे प्रकट है कि यह रचना तप के प्रताप का वर्णन करने के लिए लिखी गई है । यह कथा भो कथाकोश से ली गई है ।
कनकरथरास (गा० २७२ ) भी कथाकोश पर आधारित रचना है । इसमें दान का माहात्म्य समझाया गया है । सम्बन्धित पंक्तियाँ देखिये
अरिहंत चुवीसइ जपउं वंछउ कवि आसीस, दान तणां फल वर्णवउं कनकरथ नरइस ।
इसके अन्त में लिखा है - कथा कोसिहं कथाकोसिहं कहिउ दृष्टान्त' श्रीदत्त चौपइ ( ४६१ गाथा, सं० १६४२ आसो शुद ३ गुरु, चाडा).
आदि - सरसती भगवति पाय प्रणमु, दीऊ बुद्धि भण्डार, हूं मूढ़ नि मतिहीण छडं, पणि आपि तु आधार । रचनाकाल - सम्वत आठ बिवार, वरस बिनई च्यार, बांमांकिइ गणउ ओ सहू ओ ओ भणउ ओ
अन्तिम पंक्तियाँ
श्रीदत्त मुनिवर सुगुण सुन्दरराग विराग ऊपरि रचिउ, ढाल चूपै दूहा भेली मनह मेली ओ रचिउं
जि भणि भावइ सुणि गावइ तस मनवंछित फलि राजरद्धि राणिम सपरिवारह ईहां भवि परभवि भलि । २ उपशमसज्झाय ( २१ कड़ी, सं० १६४७ वैशाख वदी, गुरुवार, चाडा)
रचनाकाल - संवत सोल सतताल नइ रे, वदि वैसाख विसेसो, दसमी गुरुवारइ रचीरे, ओछ मतइ लवलेसो । लवलेस कही छइ पांच सझाइ, पदमसुन्दर बोलइ उवझाइ, चाडउ नयरे आणंद आवइ, उपसम सु सुणज्यो भावइ । १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १८३ - १८४ (द्वितीय संस्करण ) २. वही, पृ० १८५
३. वही, भाग ३ पृ० ७५६-६४ (प्रथम संस्करण
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