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________________ उपोद्घात ११ 'मजहबी' समझते थे। वस्तुतः वह सभी धर्मों और सम्प्रदायों के आचार्यो का आदर करता था। बदायूनी ने 'अलबदायूनी' में उसके धर्म सम्बन्धी कार्यो का विवरण दिया है। 'आइने अकबरी' से ज्ञात होता है कि उसकी धर्मसभा में १४० सदस्य थे जिनके पाँच वर्गों के प्रथम वर्ग में २१ आचार्यो के नाम थे। इनमें सोलहवाँ नाम प्रसिद्ध जैनाचार्य हीर विजय सूरि का था। हीरविजय सूरि और सम्राट अकबर - 'सूरि अने सम्राट्' नामक ग्रन्थ से ज्ञात होता है कि अकबर को हीरविजय सूरि से मिलने की प्रेरणा चम्पा श्राविका के छह मास के उपवास से मिली। कमरु खाँ ने उसे बताया कि चम्पाबाई इतना लम्बा उपवास अपने गुरु की कृपा से कर सकी है तो अकबर की इच्छा हुई कि वह उसके गुरु हीरविजय से मिले। उसने गुजरात के पूर्व अधिकारी एतमाद खाँ से भी पता लगवाया तो उसने भी सूरि जी को सच्चा साधु बताया । अतः सम्राट ने शिहाबुद्दीन मुहम्मद खाँ को सूरि जी से अनुरोध करने का आदेश दिया। आगरा के जैन संघ ने भी आग्रह किया। फलतः सम्राट से मिलने के लिए सूरि जी विहार करते हुए आगरा की तरफ चले। उधर बादशाह की मंशा जानने के लिए विमलहर्ष, सिंहविमल आदि पहले सीकरी पहँचे और वहाँ से आश्वस्त होकर सूरिजी से पुनः अभिरामाबाद में मिल गये। सूरि जी के साथ इस यात्रा में सहजसागर, गुणविजय, गुणसागर, कनकविजय और हेमविजय आदि ६७ साधु संत थे । सूरि जी अहमदाबाद, सांगानेर, चाटसू, सिकन्दरपुर और अभिरामाबाद होते हुए अन्ततः फतहपुर सीकरी पहुँचे। वहाँ उन्हें अबुलफज़ल की देख-रेख में बिहारीमल के भाई जगतमल्ल कछवाहा के महल में ठहराया गया। एकाध दिन के विश्राम के पश्चात् उनकी सम्राट् से मुलाकात हुई। उसने अपने तीनों पुत्रों और मंत्रिमंडल के साथ सूरिजी की अभ्यर्थना की। कई दिन तक खूब सत्संग किया और सूरिजी की विद्वत्ता तथा उनके तप-त्याग से बड़ा प्रभावित हुआ। उसने सूरि जी के आदेशानुसार जीवहिंसा बन्द करने की घोषणा करवाई। तीर्थ कर माफ किया, जजिया कर में छूट दी और बन्दी मुक्ति का भी आदेश दिया। स्वयं भी मांसाहार कम करने का व्रत लिया। कुछ समय 1. "The weary traveller was made over to the care of Abul. Fazl until the sovereign found leisure to convers with him' 'सूरीश्वर अने सम्राट' पृ० १०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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