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________________ पद्मराज २७७ अभयकुमार चौपाई का आदि अविचल सुख संपतिकरण, प्रणमुं पास जिणंद, शासन नायक सेवीइ, वर्द्धमान जिनचंद । गोयम गणधर प्रणमी सवि, समरु सद्गुरु पाय, सरस वचन रस वरसती, सरसति करउ पसाय, सुणता चित्त अचरिज करइ, बहुविध बुद्धि विशाल; मुनिवर अभयकुमार नउ भणिसु चरीय रसाल । अन्त-जे जिनवचन विरुद्ध कहाइ, मिच्छा दुक्कड़ ते मुज्झ थाय । रचनाकाल संवत सोलह सइ पचास, जेसलमेरु नयर उल्लासि । खरतरगछ नायक जिनहंस, तासु सीस गुणवंत वयंस, श्री पुण्यसागर पाठक सीस, पद्मराज पभणइ सुजगीस ।' क्षुल्लककुमारराजर्षिचरित्र के आदि की पंक्तियां निम्नांकित हैं पास जिणेसर पयकमल, पभणिस परम उल्लास, सुखपूरण सुरतरु समउ, जागइ महिमा जासु । रचनाकाल- सोलह सइ सतसठा वच्छरइ, श्री मुलतान मझारि, फागुण मासि धवल पंचमी दिनइ, संघ सयल सुखकार । आगे गुरुपरंपरा दी गई है और जिनहंस तथा पुण्यसागर का पुण्यस्मरण किया गया है। इस ग्रन्थ की अनेक प्रतियाँ विभिन्न भंडारों में उपलब्ध हैं, इससे इसकी लोकप्रियता का अनुमान किया जा सकता है। आपकी भाषा शैली से लगता है कि आपका हिन्दी, गुजराती के साथ संस्कृत-प्राकृत पर भी अच्छा अधिकार था। उदाहरणार्थ दो पंक्तियाँ देखिये भवतरु मूल वखाणिया जिनवर च्यारि कषाय, लोभवली तिणमइ अधिक, पापह मूल कहाइ। १. डॉ० कस्तूर चन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची, ५वा भाग पृ० ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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