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________________ २७६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, विधि लिखीयइ छइ । पहिली धूप झलि सत्क मंगलदीव इ कीधइ, बीजा धूपवलि वाजिक बजाडि।"१ पद्य में आपने अपने गुरु देवतिलक उपाध्याय की प्रशंसा में 'देवतिलकोपाध्याय चौपइ (१५ गाथा) लिखी है जो ऐतिहासिक जैनकाव्य संग्रह में प्रकाशित है । इसका आदि इस प्रकार है पास जिणेसर पयनमु निरुपम कमलानंद, सुगुरु थुणता पामियइ, अविहड सुख आणंद । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ भी उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैंगुरु श्री देवतिलक उवझाय प्रणम्यइ वाधइ सुहसमवाय, अरि करि केसरि-विसह चोर समर्थउ असिव निवारइ घोर ।१४। ओ चउपइ सदा जे गुणइ, उठि प्रभाति सुगुरुगुण थुणइ, कहइ पद्ममंदिर मन शुद्धि तसु थाये सुखसंपति सिद्धि ।१५।२ आप एक श्रेष्ठ गद्य लेखक और अच्छे कवि थे। पद्मरत्न आप खरतरगच्छ की आहापक्षीय शाखा के लेखक थे। यह शाखा शान्तिसागर और जिनदेव सूरि से प्रारम्भ हुई थी । यह. पता नहीं चल पाया कि आपके गुरु कौन थे। आपने सं० १६६५ में 'अजापुत्र चौपइ' लिखी थी। चौपइ का अन्य विवरण एवं उद्धरण प्राप्त नहीं हो सका। पद्मराज-आप खरतरगच्छ के महोपाध्याय पुण्यसागर के शिष्य थे । इन्होंने सं० १६५० में 'अभयकुमार चौपई' की रचना जैसलमेर में की । क्षुल्लककुमार राजर्षि चरित्र या क्षुल्लकऋषिप्रबन्ध (सं० १६६७. कार्तिक शुक्ल ५, मुलतान) यह १४१ गाथा की रचना है । सं० १६६९ में सनत्कुमाररास लिखा । अन्य स्तवन और गीतादि भी इन्होंने लिखे. हैं। पुण्यसागर के साथ मिलकर पद्मराज ने कई संस्कृत ग्रन्थ और विद्वत्तापूर्ण टीकायें भी लिखी हैं। इनकी कुछ प्रमुख रचनाओं का संक्षिप्त विवरण आगे दिया जा रहा है। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ. ३६७ (द्वितीय संस्करण) २ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० ५५; जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३६७ (द्वितीय संस्करण) ३. श्री अगर चन्द नाहटा-परम्परा पृ०. ८४ ४. वही, पृ० ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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