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________________ पद्ममंदिर २७५ पद्मकुमार-आप खरतरगच्छीय पूर्णचन्द्र के शिष्य थे। आपने सं० १६८४ में 'मृगध्वज चौपइ' की रचना की।' यह रचना ८४ कड़ी की है और सं० १६६१ से पूर्व लिखी गई। इसकी प्रारंभिक पंक्तियां उद्धृत की जा रही हैं पणमिय सिरि गोयम गणहर मणह खाय, हुं गावसिं गिरुया मृगध्वज मुनिवर राय । स्रावस्ती नगरी अमरावती संमाण, तिहां राज करइ जितशत्रु नरेसर जाण ।१। इसकी अंतिम पंक्तियां इस प्रकार हैं मृगध्वज मुनि तणउ चरित्र, सुणता हुई जनम पवित्र, श्री नेमिनाथ वारइ अह, रिषि हूंया गुणगण गेह । धन धन मृगध्वज मुनिराय, यह ऊठी प्रणमुपाय, तसु नामइ नवइ निधान, पामीजइ सुख संतान । खरतरगच्छ सत्गुरुराय, श्री पूर्णचन्द्र उवझाय, तासु सीस सद्द सुविचार, इम बोलइ पद्मकुमार । पद्ममंदिर-आप खरतरगच्छ की सागरचन्द्रसूरि शाखा में देवतिलक उपाध्याय के शिष्य थे। आप गद्य और पद्य रचना में समान रूप से कुशल थे। गद्य में आपकी कई रचनायें उपलब्ध हैं जिनमें गणधर सात शतक लघुवृत्ति ( सं० १६४६, जैसलमेर ) प्रकाशित हो चुकी है । आपने सं० १६५१ में ११ हजार श्लोकों में 'प्रवचनसारोद्धार बालावबोध' नामक भाषा टीका लिखी। आपकी एक अन्य गद्यकृति 'पार्श्वनाथदसभवबालाबोध' भी प्राप्त है। इससे प्रमाणित होता है कि गद्य विधा में आपकी विशेष गति थी। विजयराज>देवतिलक शिष्य पद्ममंदिर की एक रचना 'वृहत्स्नात्रविधि' भी गद्य में है। इसका रचनाकाल सं० १६५९ है। रचना का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है 'पहिली छत्रपरिभ्रमण प्रक्षेप बलि दिकपाल स्थापनाइ रहित स्नात्र १. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ८६ २. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४६३ और भाग ३ पृ० ९३७ (प्रथम ___संस्करण) तथा भाग २ पृ० ३९३ (द्वितीय संस्करण) ३. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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