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नारायण
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आपकी दूसरी रचना 'नेमि स्तवन' (३१ कड़ी, सं० १६७२ दीपावली, अहमदाबाद) का मंगलाचरण निम्नाङ्कित है
मंगलकारक दुरिय निवारक, पास जिणंद सिर नामीजी,
श्री नेमिसर भुवनदिणेसर, गुण गाइ मति पामी जी।' रचनाकाल-संवत सोल बहुतिरि दिवसि दीवाली सूभ आज ,
श्री जिनराज गुण गाइया, सिद्ध थया सर्वे काज से।
नारायण (१)-आप रत्नसिंह गणि के शिष्य चावा ऋषि के प्रशिष्य एवं समरचंद के शिष्य थे । आपकी नलदमयंतीरास, कुडरिक पुंडरिक रास, श्रेणिक रास, अंतरंग रास और अयमत्ताकुमार रास नामक पाँच रासग्रन्थ उपलब्ध है। एक छोटी रचना १८ नात्रा संझाय भी प्राप्त है। इनका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।
नलदमयंतीराम-(३१५ कड़ी, सं० १६८२ पौष शुक्ल ११ गुरुवार खाखा ग्राम)- रचनाकाल कवि के शब्दों में देखिये
संवत सोल बीहासिया वरषे, पोष शुदि अकादशी,
गुरुवार कृतिका तणइ जोगइ, कीधउ जीम उल्लसी ।। अन्तरङ्गरास-सं० १६८३ में लिखी गई। तीसरी कृति अयमत्ता कुमाररास (२१ ढाल १३५ कड़ी सं० १६८३ पौष वदि बुद्ध काचवल्ली) का कलश इस प्रकार है
अरिहंस वाणी हृदय आणी पूरी इति निजआस , श्री रत्नसीह गणि गछनायक पाय प्रणमी तास । संवत सोला त्रिहासीआ वर्षे बुधि बदि पोस मास , कल्पवल्ली मांहि रंगे रच्यो सुन्दर रास । चावा ऋषि शिष्य समरचंद मुनि विमल गुण आवास मे,
तस शिष्य मुनि नरायण जंपे धरी मनि उल्हास ।१३५। कुंडरिक पुडरिक रास (२१ ढाल सं० १६८३) १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९५५-५६ (प्रथम संस्करण) और भाग ३
पृ० १५८ (द्वितीय संस्करण) २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २४२ (द्वितीय संस्करण) ३. वही, भाग ३ पृ० २४३-२४४
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