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________________ २७० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भगवान महावीर स्वामी के जीवन पर आधारित है ।" उस समय तक महावीर के जीवनवृत्त पर कम ही काव्य ग्रंथ लिखे गये थे अतः इस रचना का स्थान महत्वपूर्ण था । जिस समय महाकवि बनारसीदास - समयसार नाटक लिख रहे थे तभी यह काव्य भी लिखा गया था । यह एक विस्तृत काव्यग्रंथ है । इसकी प्रति दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर, कामा में उपलब्ध है । इसमें कवि ने रचनाकाल इस प्रकार बताया है - सोरहसै इक्यानवे अगहण सुभ तिथिवार, नृप जुझार बुन्देल कुल जिनके राज मझार । यह संक्षेप वषाण करि कहीं प्रतिष्ठा धर्म, पर जाग जुत्तवाडी विमल तिण उत्पत्ति बहुधर्म | इसमें लेखक ने अपने कुल और वैश्यकुल के अन्य ८४ गोत्रों का वर्णन किया है । कवि ने सकलकीर्ति का उल्लेख भी किया है सकलकीर्ति उपदेश प्रवाण, पिता-पुत्र मिलि रच्यो पुराण । इसकी अंतिम पंक्तियां इस प्रकार हैं पंचपरम जगचरण नमि, भव जग बुद्ध जुत धाम क्रपावंत दीजे भगत दास नवल परणाम । २ नानजी -- आप लोकागच्छीय रूप > जीव > कुंवरजी > श्रीमल > रतनसी के शिष्य थे । आपने सं० १६६९ दीपावली के समय नवानगर में अपनी रचना 'पंचवरण स्तवन' को पूर्ण किया । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखें श्री अरिहंत पाओ नमीअ, स्तवन रचिसि जिनराय, पंचवरण जिनवर तणां जी, कहिया मुझ मन थाय । रचनाकाल - गणि नेमि जिणंद सलोइ मुनि नानजी अणि परि बोली, संवत मोल उणोत्तरा वर्षे दीवालि दिन मन हरषे । - राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार की ग्रन्थ १. डा० कस्तूरचन्द कासलीवालसूची ५वां भाग पृ० २४ २ . वही, पृ० २९८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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