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________________ नरेन्द्रकीर्ति २६९ श्री हनुमंत केवली थयो, कर्मा हणींनि मुगति गयो । अनंत सौख्य पाम्यो मुनिराय, नरेन्द्रकीरति प्रणमी तस पाय मूलगंध उदयाचल भांन, कुंदकुंद गुणह निधान, अनुक्रमि सकलकीर्ति मुनीराय, भुवनकीर्ति सुरपूजित पाय । जंगम तीर्थ जग मांहि जांण, सकलभूषण संजमकज भांणि, तेह पदकमल हृदय निज धरी, नरेन्द्रकीरति गुणमाला करी। यह रचना भी ब्रह्म नेमिनाथ के आग्रह पर की गई है । कवि ने रचनाकाल इस प्रकार बताया है सोल बावनि मागसिर मास, शुदी तेरस तिहा करी निवास,. आदर नेमिदास ब्रह्म तणी, करी गुणमाला उद्यम घणि । आपकी चौथी रचना 'नेमिश्वर चन्द्रायणा' का मंगलाचरण निम्नांकित है परम चिदानंद मन्यधरी अनि प्रणमी श्री गुरु पाय, हरष आदि सुं स्तवु श्री नेमिश्वर जिनराय।' गुरपरंपरा : तत्पट्ट पंकज सुर समान, सुमतिकीरति सुरी गुणह निधान,.. ते चरण चित्त धरी रे विशाल, नरेन्द्रकीत्ति कहि रे रसाल ।। नरेन्द्रकीरति पाठक कहि अनि नेमि चंद्रायण सार, भाव सहित भणि सांभली, ते पावे भवपारः। इसका रचनाकाल नहीं मालूम हो सका, लेकिन इसकी प्रतिलिपि सं० १६९० की उपलब्ध है। इसमें कुल १०४ पद्य हैं । इस रचना में कवि ने नेमिनाथ का पावन और मनोरम चरित्र चित्रित किया है। इनकी भाषा अन्य दिगम्बर कवियों की तरह स्वच्छ सरल हिन्दी है । नवलराम-आप बुन्देलखण्ड के निवासी थे । आपने मुनिसकल कीर्ति के उपदेश से प्रेरित होकर अपने पुत्र के सहयोग से 'वर्द्धमान पुराण भाषा' नामक ग्रन्थ का प्रणयन सं० १६९१ में किया। यह काव्य १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २८० (द्वितीय संस्करण) २. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल-प्रशस्ति संग्रह पृ० २३२-२३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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