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- गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
नाना ग्रंथ तणा मत जोय, कोक चोपइ कीधी सोय, श्री नरबुद कहै कविराज, अह ग्रन्थ थरि हस्यो समराज । इसकी अंतिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
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कामशास्त्र अति उत्तम ओह, देइ चित्त नें सुणसें जेह, अनंत सुख पामि सदा, श्री नरबुद कहे सुखसंपदा ।' कवि अहमदाबाद के श्रीमाली वैश्य देवराज के पुत्र थे । इनकी माता का नाम राजुल दे था; कवि ने इसका विवरण इस प्रकार दिया है
श्री श्रीमाली तिहा विवहार, देवराज नामे उपचार, मान दीयै महमद सुलताण, महिता मांहि बड़ो बंधाण । नेह धरे कुलवंती सार, विपक्षचूरण कुलविखात, राजुल दे नामे ऊतरे, तेहनी कुखे हूँ अवतर्यो । २
नरेन्द्रकीति - श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने इन्हें दिगम्बर सकलभूषण का शिष्य वताया है । ' लेकिन डा० कासलीवाल इन्हें वादिभूषण और सकलभूषण दोनों ही संतों का शिष्य कहते हैं ।" श्री नरेन्द्रकीर्ति ने ब्रह्म नेमिदास के आग्रह पर 'सगर प्रबन्ध' नामक काव्य ग्रन्थ की रचना की । यह कृति सं० १६४६ आसो सुदी दशमी को पूर्ण हुई। यह अच्छी रचना बताई जाती है । इनकी दूसरी रचना 'तीर्थकर चौबीसना छप्पय' है । इन ग्रन्थों की प्रतियाँ उदयपुर के शास्त्र भंडार में सुरक्षित हैं । इनका उद्धरण डॉ० कासलीवाल और श्री देसाई ने भी नहीं दिया है, इसलिए इनकी भाषाशैली एवं रचनाशैली का नमूना उपलब्ध नहीं हुआ । नरेन्द्रकीर्ति की एक अन्य रचना 'अंजना - 'रास' का (सं० १६५२ मागसर शुदी १३ जावरा ) जैन गुर्जर कविओ से उद्धरण दिया जा रहा है
१. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ३२३-३२६ और भाग ३ पृ० ८२७-८२८ ( प्रथम संस्करण )
२. वही
३. वही, भाग २ पृ० २८० (द्वितीय संस्करण)
४. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल - राजस्थान के जैन संत पृ० १९६
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