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नर्बुदाचार्य
२६७ इस नाम का कोई कारण नहीं बताया है पर जैन कवियों की हिन्दी कविता' उनका शोधप्रबन्ध है और शायद उन्होंने किसी शोध के आधार पर यह नाम रखा हो। मुझे तो यह छापेखाने की भूल लगती है और नाम नयसुदर ही उचित लगता है ।
नर्बुदाचार्य ( नर्मदाचार्य) आप तपागच्छ कमलकलश शाखा के आचार्य मतिलावण्य के शिष्य कनक द्वितीय के शिष्य थे। इन्होंने सं० १६५६ विजयादशमी बुधवार को बुरहानपुर में 'कोककला (शास्त्र) चौपाई' लिखी। इसका विषय इसके नाम से ही स्पष्ट है । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ निम्नाङ्कित हैं
मातंगी मति आपीये, जिम कवित. करुं सुरसाल,
कोककला गुण वर्णवू, प्रीछे. बालगोपाल । रचनाकाल
संवत सोल छपने सार, शक पनर अकवीस मझारि,
धातू अयम दक्षिणदिश रवि, शरदसपति महिबाल कवि ।८०।' यह रचना कोका कृत कोकशास्त्र पर आधारित है
कोकशास्त्र कोके कीयउ, ते जाई सुविचन्न,
कवि नरबद इम ऊचरइ, बोलू. कवित कथन्न । रचना में कवि परंपरा विस्तार से दी गई है जिसमें मतिलावण्य के अनेक शिष्यों में कनक मुनि और उनके शिष्यों में कवि ने अपने नाम का उल्लेख किया है
सूरिश्वरना गणधर अह, केतला नाम कहुं बहु तेह; गछ मांहि गुणवंत गंभीर, यतिअत कनक नमै धीर । अहवा गुरु भटारक जेह, कहु उपमा सवाइ तेह,
शिष्य नरबुद – करुण करी, दीधो पद तैं ऊतम धरी । कवि ने खानदेश के असीरगढ़ के किले और बुरहानपुर नगर का. उल्लेख करते हुए वहाँ के बलशाली राजा दलशाह और उनके पुत्र बहादुरशाह का भी वर्णन किया है। वह स्वयं को कविराज कहता है
१. डॉ. हरीश-जैन गुर्जर कविओ की हिन्दी कविता को देन पृ० ७७ २. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ३००-३०८ (द्वितीय संस्करण)
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