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सुरसुन्दरी रास (सं० १६४६ जेठ शु० १३ ) इसमें नवकार मंत्र का माहात्म्य बताया गया है । यह भी आनन्दकाव्यमहोदधि में प्रकाशित है । इसके ३८ प्रतियों की सूचना श्री देसाई ने दी है अर्थात् यह अति - लोकप्रिय रचना रही हैं । इसकी दो पंक्तियाँ देखिये
-जयसुन्दर
आगे जिणे अकचित्त ध्यायो सो परमानंद पायो, सुरसुंदरी सतीओ समर्यो तब तसकष्ट गमायो । कवण सती सा हुइ सुरसुंदरी किम राख्यु तेणे शील, श्री नवकार मंत्र महिमाथे किम सा पामी सील ।
नलदमयंती अथवा नलायनरास ( सं० १६६५ पोष सुदी ८ - मंगलवार) यह रास माणिक्यसूरि विरचित नलायन ग्रन्थ पर आधारित है । इस सम्बन्ध में कवि ने लिखा है
माणिक्यसूरि महायती तिणि करिउ नलायण ग्रंथ, नवरस पयोधि विरोलिवा करि थयुजे सुरमंथ । ग्रंथ विवरण
ग्रंथ संख्या हवइ बौलु सुद्ध, दूहा श्लोक काव्य गाहा किद्ध, भाष्या छंद षोड दे, सहस्र तीनसई अठाव सतपांत्रीस श्लोक अनमान, हर्ष धरी सहु करयो गांन, अ संभलता शिवसुष होइ, ज्ञानवंत विचारो जोइ । ग्रंथ नलायन तु उद्धार नल चरित्र नवरस भंडार, वाचक नयसुंदर सुभभाव, अ तलि ओ षोडस प्रस्ताव |
शील शिक्षारास - ( विजयविजया सेठानी कथा गर्भित ) सं० १६६९ भाद्रपद । इसमें सेठ विजय-विजया की कथा के माध्यम से शील की शिक्षा दी गई है ।
गिरनार उद्धार रास ( दधिग्राम में लिखी गई ), यह मुनि वालविजय द्वारा श्री देसाई की प्रस्तावना के साथ प्रकाशित है । इसके आदि की दो पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
१. जैन गुर्जर कविओ पृ० १०२
२. वही, पृ० १०७
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