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२६.४.
मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
अप्रतिबद्ध सभा मंहि जोय, कवि चतुराई निष्फल होय । जिम नारी सोले शृंगार, आगल विफल अन्ध भर्त्तार |
इसके प्रारम्भ में भी संस्कृत भाषा में मंगलाचरण है और इसमें भी वही गुरुपरंपरा दी गई है जो यशोधर चौपइ में थी । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
अकमना आणी उल्हास, नयसु दर जाणी अ रास । जे नरनारी भणे सांभले, ते घर निश्चे अफलां फले ।
शत्रुञ्जय (सिद्धाचल) अथवा विमलगिरि उद्धाररास सं० १६३८ आसो सुदि १३. मंगलवार को अहमदाबाद में रची गई । रचनाकाल इस प्रकार बताया है
सोल अडत्रीसे आशो मासे, शुदि तेरस कुजवार, अहमदाबाद नयर मांहे में गायो रे शत्रुञ्जय उद्धार के ।
यह भी आनन्दकाव्यमहोदधि में प्रकाशित रचना है । इसके कलश की दो पंक्तियाँ देखिये
इम त्रीजग नायक मुगतिदायक, विमलगीरी मंडण धणी, उधार शेत्रुञ्जे सार गायो, सुणो जिण मुगति धणी । "
प्रभावती ( उदायन) रास अथवा आख्यान (सं० १६४० आसो शुद ५ बुध विजापुर) आदि
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प्रथमनाथ दाता प्रथम, जयगुरु प्रथम जुगादि, प्रथम जिणंद प्रथम नमु, जेणेकरी पुण्यादि ।
यह आख्यान उत्तराध्ययन के अठारहवें आख्यान पर आधारित है जिसमें प्रभावती और राजा उदायी का चरित्र चित्रित है । रचनाकाल और स्थान का विवरण देखिये
षट् सत्तिरी विद्यापुरी वे, मइ रहीया चुमांसि, श्रीसंघ ने आग्रहे ऊलही जिनवीर बंदी उलासि । सोल च्यालिसी वरषि हरषे आसो पंजमी ऊजली, बुधवार अनुराधा नक्षत्रे प्रीतियोगे मनरुली ।
१. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ९९ (द्वितीय संस्करण )
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