SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कुलक, शंखेश्वर पार्श्व स्तवन और शांतिनाथ स्तवन आदि आपकी प्रमुख रचनायें उपलब्ध हैं जिनका विवरण क्रमशः दिया जा रहा है। मुनिजिनविजय के संग्रह में नलदमयंतीरास की एक ऐसी प्रति है जिसमें प्राचीन कवियों के काव्यांश सुभाषित रूप में संग्रहीत हैं। उनसे यह मालूम होता है कि कवि नयसुन्दर के समय गुजरात में हिन्दी प्रचलित थी और गुजराती मिश्रित हिन्दी का प्रयोग कवि अपनी काव्य भाषा में करते थे, यथा कुण वैरी कुणवल्लही, कवण अनेरो आप; भव अनंता भमता हुआ नित्य नवां मां बाप ।' इस समय तक गुजराती कवि मुस्लिम संपर्क के कारण अपनी भाषा में उर्दू (अरबी-फारसी) के प्रचलित प्रयोग भी करने लगे थे, नलदमयंतीरास की पंक्तियां देखें दुनियां में यारा विगर जे जीवणा सवि फोक, कह्या न जावे हर किसूं आपणे दिल का शोक । २ कवि ने दिल और शोक और फोक को एक ही छंद में जड़ दिया है । इससे भाषा में सहजता और रवानी आ गई है। यशोधरनृप चौपइ सं० १६१८ या १६७८ की पौष वदी १ गुरुवार की रचना है। इसका ठीक-ठीक संवत् निश्चित नहीं है, कवि ने इस प्रकार कहा है तस लघु वंधवइ अह रास रच्यु शमगेह, वसुधा वसु मुनि रस एक संवत्सर सुविवेक ।६९। प्रतिपद पौषनी असिता, कथा संपूरण विहिता, सुरगुरु वासर सार, पुष्प नक्षत्र उद्धार ७०।३ इन शब्दों से १८, ७१ और ७८ अंक मिलते हैं, श्री देसाई सं० १६१८ के पक्ष में हैं। इसके प्रारम्भ में मंगलाचरण संस्कृत में है जिससे इनके संस्कृत ज्ञान का भी प्रमाण मिलता है१. जैन गुर्जर कंविओ भाग ३ पृ० ७४८-५५ (प्रथम संस्करण) २. श्री ह० ग० शुक्ल 'हरीश'-जैन गुर्जर कविओ की हिन्दी कविता पृ० ७७ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ९४ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy