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• नयसुन्दर
सीस तास हरषि री, अहुकरी तवननी जोड़ि, उवझाय नयसागर भणइ, नित भणतां रे होइ मंगलीक कोडि कि भेट्यो श्री महावीर ।
नयरत्न शिष्य - ( बड़तपगच्छ ) आप बड़तपगच्छीय नयरत्न के शिष्य थे । इससे अधिक इनके सम्बन्ध में ज्ञात नहीं है । इनकी रचना 'प्रतिबोधरास' (८५ कड़ी) सं० १६३४ आसो सुदी १ मंगलवार को हालीसा में लिखी गई । इसका आदि इस प्रकार है
सकल सरसति पयनमी मांगु वचन प्रकाश, सहि गुरुपाय पसाउलि गाऊं प्रतिबोध रास ।
गुरु - बड़तपछि मुनिवर सुणु पंडित नयरत्न दख्य, तासतणी अनुमति लही, रास करिउ मन हरख्य । रचना समय - सोल चुत्रीसा संवछरि अश्वन मास अतिसार, चंद्रोदय तिथि ऊजली रूयडु भृगुवार | थोड़ी मति कर जोड़ि करि आणि मनि उछाहि,
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रास कीउ प्रतिबोध गाम हालीसा मांहि । " भणु गुणु हीfs धरु, आणु अति उल्हास,
सारधि सोधि मंदिरि घणी, मंगलीक घरि तास । इसकी भाषा कमजोर है, दख्य, हरख्य, रधि आदि शब्द इसके प्रमाण हैं ।
नयसुन्दर - वड़तपगच्छीय भानुमेरु गणि के शिष्य थे । भानुमेरु के गुरु का नाम धनरत्न सूरि था । नयसुन्दर समर्थ कवि और विद्वान् उपाध्याय थे | आप गुजराती, हिन्दी के अतिरिक्त प्राकृत, संस्कृत और उर्दू के भी जानकार थे । आपने मरुगुर्जर भाषा में पर्याप्त साहित्य लिखा है | 'आनन्द काव्य महोदधि' मौक्तिक छह में आपकी प्रसिद्ध रचनायें - रूपचंद कुँवर रास, नलदमयंती रास तथा शत्रुंजय उद्धार रास छपी है । इस ग्रन्थ की प्रस्तावना में श्री देसाई ने कवि का जीवनवृत्त भी दिया है । यशोधरनृप चौपाई, प्रभावती ( उदायन) रास, सुरसुन्दरी रास, शीलशिक्षारास, गिरनार उद्धार रास, आत्मप्रतिबोध
१. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १६२-६३ (द्वितीय संस्करण ), भाग ३ पृ० ७३५-३६ (प्रथम संस्करण)
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