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________________ २६० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नयविलास--आप मुख्यरूप से गद्य लेखक थे। खरतरगच्छीय जिनचन्द्रसूरि के आप शिष्य थे। आपने सं० १६९८ से पूर्व लोकनालबालावबोध की रचना की। इसकी आरम्भिक पंक्तियाँ आगे दी जा रही हैं प्रणम्य श्री महावीर लोकालोक प्रकाशकं, लोकनालाख्य शास्त्रस्य कुर्वे बालावबोधकं । स्वच्छे खरतरगच्छे श्री जिनचन्द्रसूरि राजानां, शिष्योऽत्र नयविलासः शास्त्राम्नायं यथाज्ञातं ।' लेखक संस्कृत का पंडित लगता है। इनकी हिन्दी गद्य शैली का नमूना नहीं प्राप्त हो सका। नयसागर उपाध्याय-आप आंचलगच्छीय कल्याणसागरसूरि के शिष्य रत्नसागर के शिष्य थे। कल्याणसागरसूरि को आचार्य पद सं० १६४९, अहमदाबाद में और गच्छेश पद सं० १६७० पाटण में मिला था। उनके प्रशिष्य नयसागर ने अपनी रचना 'चैत्यवंदन' (८ ढाल) सं० १६७० और कल्याणसागरसूरि के स्वर्गारोहण सं० १७१८ के बीच किसी समय की होगी। इसकी अन्तिम पंक्तियाँ देखें इम त्रिजगवंदन दुख निकंदन सकल जनमन सुदरो, सासय असासय चैत्य पडिमा थुण्यो मइ उल्लट धरो। विधि पक्षि उदयाचल दिवाकर श्री कल्याणसागर सूरीसते, तस सीस सुंदर सुगुण मंदिर श्री रत्नसागर उवझायरो, तस सीस सादर नयसागर रच्यो चैत्यवंदन वरो ।' आपकी दूसरी रचना 'चौबीसी' की अन्तिम पंक्तियां भी उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं श्री अंचलगण दिनमणी, श्री कल्याणसागर सूरिराय, ___ तास सीस शोभानिलो, श्री रतनसागर उवझाय । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३३३ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३ खण्ड २ पृ० १६११ (प्रथम संस्करण) २. राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २३० ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १६७-१६८ (द्वितीय संस्करण), भाग १ पृ० ५९२-५९३ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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