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________________ २५८. मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गौतमस्वामी पृच्छा (५९ गाथा) सं० १६१७ या सं० १६१३ वैशाख बदी १० को सिन्धुदेश के शीतपुर में लिखी गई। इसमें दोहा छंद का प्रयोग हुआ है । गौतम गणधर ने भगवान महावीर से जो प्रश्न पूछे और महावीर ने जो उत्तर दिया, इसमें उसी का उल्लेख है। रचना का प्रारम्भ देखिये वीर जिणंद. तणा पय वंदि, त्रिकरण शुद्ध करी आणंदि धर्म अधर्म तणो फल जाणि, श्री गौतम पूछे सुप्रमाण । किम करमे जीव नरके जाय, तेहि ज जीव अमर किम थाय ? तिरिय तणी गति किण परिलहे, माणस पणों किम संग्रहे । इसके अन्तिम दो छंद भी उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं गौतम पृच्छा अहवी, प्रश्नोत्तर अडयाल भवियण भावे सांभलो, श्रवण सुधा सुविशाल । भण गुण जे भाव धरि तिहां घरि रङ्ग अभंग मनवंछित सुहिला फल इम पभणै नयरङ्ग ।' गौतमस्वामी छन्द-१०८ गाथा की स्वतन्त्र रचना है जिसकी कुछ पंक्तियां देखियेइला लोक आणंद सामिवीर सुपसायइ, ___ गरुया गणधर नामि जरामरण भय जायइ । पुहवी मात प्रसिद्ध जनक वसुभूति जुगत्तइ, गौतम गोत्र गोपालमेरु अविचल महिमत्तइ । तपसीया तिलक लीला लबधि जलधि इम नयरङ्ग जपइ श्री इन्द्रभूति संघह सहित पुन्न पडूरइ प्रपपइ । २४ जिन स्तुति की प्रारम्भिक पंक्ति इस प्रकार है नाभिराया कुलचन्द मरुदेवी केरो नन्द । इन उद्धरणों से इनकी भाषा शैली एवं काव्य क्षमता का अनुमान किया जा सकता है। १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ९२-९३ (द्वितीय संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० ६९८ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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